भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी, कलियुग वर्ष ५११६
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पू. (डॉ.) चारुदत्त पिंगले मार्गदर्शन करते हुए
काठमांडू (नेपाल) – राष्ट्रीय धर्मसभा नेपालकी ओरसे १ तथा २ सितम्बरको काठमांडूमें दो दिनका राष्ट्रीय पुरोहित सम्मेलन संपन्न हुआ । उस समय प्रमुख अतिथिके रूपमें उपस्थित व्यक्तियोंको संबोधित करते हुए हिन्दू जनजागृति समितिके राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेने यह वक्तव्य दिया कि जब ब्राह्मण धर्मका त्याग करता है, तो घोर कलियुग आता है, समाजमें अधर्मकी मात्रा बढती है । पहलेके ब्राह्मण साधना करते थे; इसलिए उनमें ब्राह्मतेज एवं क्षात्रतेज था । उसीके अनुसार वर्तमानमें भी धर्मरक्षा तथा राष्ट्ररक्षा हेतु साधना कर ब्राह्मतेज एवं क्षात्रतेज निर्माण करना आवश्यक है ।
इस अधिवेशनके माध्यमसे पू. डॉ. पिंगळेने आगे यह वक्तव्य दिया कि समाजकी वर्तमान स्थितिके लिए हम किस प्रकार उत्तरदायी है तथा हम कहां अनुचित हैं, इसका भी विचार हमें करना चाहिए तथा अपने यजमानोंको भी राष्ट्र एवं धर्म रक्षाके कार्यमें समाविष्ट कैसे कर सकते हैं, प्रत्येक व्यक्तिको इसका भी मनन-चिंतन करना चाहिए । वेदमंत्रपठनके पवित्र वातावरणमें पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळे तथा नेपालके सांस्कृतिक मंत्रालयके सहसचिव श्री. भरतमणी सुवेदीके हाथों दीपप्रज्वलन कर सम्मेलनका अनावरण किया गया । राष्ट्रीय धर्मसभा नेपालके अध्यक्ष डॉ. माधव भट्टारायने सम्मेलनका उद्देश्य कथन करते समय बताया कि पुरोहितोंका कार्य केवल पौरोहित्य करने इतना ही नहीं, अपितु समाज एवं राष्ट्र हेतु उनका योगदान भी महत्त्वपूर्ण है ।
क्षणिकाएं :
१. इस सम्मेलनके लिए मुंबईके ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र शर्मा, देहरादूनके ज्योतिषाचार्य तथा वास्तुतज्ञ पंडित दिवाकर शर्मा विशेष अतिथिके रूपमें उपस्थित थे ।
२. पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळे तथा श्री. भरतमणी सुवेदीके हाथों, ‘पंडित-यजमान आचार संहिता,’ इस ग्रंथका प्रकाशन किया गया ।
३. उस समय उपस्थित पुरोहितोंने अपने विचार व्यक्त किए ।
४. इस सम्मेलनमें पूरे नेपालसे २०० पुरोहित समाविष्ट हुए थे ।
स्त्राेत : दैनिक सनातन प्रभात