पटना – आज से ४ दिन बाद होली है। भगवान नरसिंह द्वारा हिरण्यकश्यप के वध की खुशी में यह पर्व मनाया जाता है। इस पौराणिक कथा से जुड़ा एक धार्मिक स्थल बिहार में है। पौराणिक मान्यता के अनुसार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का दहन बिहार में हुआ था। पूर्णिया जिले के सिकलीगढ में वह जगह है, जहां होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठी थी और स्वयं जल गई थी।
खंभे से भगवान नरसिंह ने लिया था अवतार !
सिकलीगढ में हिरण्यकश्यप का किला था। यहीं भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए खंभे से भगवान नरसिंह ने अवतार लिया था। भगवान नरसिंह के अवतार से जुड़ा खंभा (माणिक्य स्तंभ) आज भी यहां मौजूद है। इसे कई बार तोडने का प्रयास किया गया। यह स्तंभ झुक तो गया, पर टूटा नहीं।
प्रह्लाद स्तंभ विकास ट्रस्ट के अध्यक्ष बद्री प्रसाद साह बताते हैं कि यहां साधुओं का जमावड़ा शुरू से रहा है। वे कहते हैं कि भागवत पुराण (सप्तम स्कंध के अष्टम अध्याय) में भी माणिक्य स्तंभ स्थल का जिक्र है। उसमें कहा गया है कि इसी खंभे से भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी।
यहां राख से खेली जाती है होली
इस स्थल की एक खास विशेषता है कि यहां राख और मिट्टी से होली खेली जाती है। ग्रामीण मनोहर कुमार बताते हैं कि जब होलिका भस्म हो गई थी और प्रह्लाद चिता से सकुशल वापस आ गए थे।
प्रहलाद के समर्थकों ने एक-दूसरे को राख और मिट्टी लगाकर खुशी मनाई थी, तभी से ऐसी होली शुरू हुई। यहां होलिका दहन के दिन करीब ५० हजार श्रद्धालु उपस्थित होते हैं और जमकर राख और मिट्टी से होली खेलते हैं।
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भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर राक्षस हिरण्यकश्यप हो गया था निरंकुश
प्राचीन काल में अत्याचारी राक्षस हिरण्यकश्यप ने तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था। उसे वरदान था कि संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे मार न सके। न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न बाहर। यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए। ऐसा वरदान प्राप्त कर वह अत्यंत निरंकुश बन गया था।
हिरण्यकश्यप के घर भक्त प्रह्लाद का जन्म हुआ। प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे और उनपर भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि थी।
हिरण्यकश्यप ने बेटे प्रह्लाद को आदेश दिया कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की पूजा न करे। प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप उसे जान से मारने पर उतारू हो गया। उसने प्रह्लाद को मारने के अनेक उपाय किए, किंतु वह प्रभु-कृपा से बचता रहा। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था। उसको वरदान में एक ऐसी चादर मिली हुई थी जो आग में नहीं जलती थी।
हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रहलाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई।
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भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर किया था हिरण्यकश्यप का वध
होलिका भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर उसे जलाकर मारने के उद्देश्य से वरदान वाली चादर ओढकर आग में जा बैठी। प्रभु-कृपा से चादर उडकर बालक प्रह्लाद पर जा पडी और चादर न होने से होलिका जल कर वहीं भस्म हो गई। इस प्रकार प्रह्लाद को मारने के प्रयास में होलिका की मृत्यु हो गई।
इसके बाद हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में खंभे से निकले। उन्होंने गोधूली बेला (शाम और रात के बीच का समय) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर हिरण्यकश्यप का वध किया था। तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा।
संदर्भ : दैनिक भास्कर