भाद्रपद पूर्णिमा / अश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा , कलियुग वर्ष ५११६
आदिवासियोंको आकर्षित करने हेतु बाइबिलका अनुवाद आदिवासी भाषामें किया जा रहा है, यह एक प्रकारकी चापलूसी ही है ।
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हिन्दुओ, संगठित होकर आदिवासी हिन्दुओंके धर्मपरिवर्तनके षडयंत्रपर प्रतिबंध लगाएं !
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मताधिक्यवाला मोदी शासन क्या अब इस धर्मपरिवर्तनकी नीतिपर प्रतिबंध लगा सकता है ?
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रांची (झारखण्ड) – झारखण्ड तथा बंगाल, इन राज्योंके आदिवासी क्षेत्रोंमें धर्मपरिवर्तनका कार्य करनेवाले ईसाई मिशनरियोंने अब वहांके बाइबिलका अनुवाद पहाडी एवं आदिवासी भाषामें करनेका अभियान अपनाया है । यह भाषा उच्चारनेवाले आदिवासी झारखण्ड राज्यके संथाल एवं सिंहभूम क्षेत्रमें, तो बंगाल राज्यके बर्दवान, बांकुरा तथा मुर्शिदाबाद जनपदमें निवास करते हैं ।
१. इससे पूर्व बाइबिलका अनुवाद संथाली, मुन्दारी तथा कुरुख, इन आदिवासी भाषाओंमें किया गया है ।
२. माल पहाडिया भाषाकी स्वतंत्र लिपि न होनेके कारण उसका अनुवाद देवनागरी लिपिमें किया जा रहा है । इस अनुवादके लिए ३ वर्षोंकी कालावधि अपेक्षित है ।
३. ईसाई चर्चद्वारा यह बताया गया है कि विशेषरूपसे बाइबिलकी मूल भाषा आदिवासियोंको ज्ञात हो, इसलिए उसमें उनकी उपासना पद्धतियां भी समाविष्ट की जाएंगी । (भारतका आदिवासी समाज अधिकांश संख्याामें अशिक्षित होनेके कारण धर्मांध ईसाईयोंको उसका अनुवाद करना सहज हो रहा है । हिन्दुओ, आपके धर्मबंधुओंके धर्मपरिवर्तनपर प्रतिबंध लगाकर धर्मकर्तव्य निभाएं ! – सम्पादक, दैनिक सनातन प्रभात)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात