आश्विन कृष्ण पक्ष षष्ठी, कलियुग वर्ष ५११६
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श्रीरामपुत्र लवद्वारा बसाया गया सर्वश्रेष्ठ संस्कृत व्याकरणकार पाणिनीका जन्मस्थान एवं
राजा जयपालकी राजधानी लवपुर (लाहौर) ! लाहौरका प्राचीन नाम लवपुर !
रामायणमें श्रीरामपुत्र लवने रावी नदीके किनारेके यह नगर बसाया । आगे यह लोहावर नामसे प्रसिद्ध हुआ । अब लाहौर नामसे प्रचलित है । यह सर्वश्रेष्ठ संस्कृत व्याकरणकार पाणिनीका जन्मस्थान है एवं दसवें शतकमें राजा जयपालकी राजधानी थी ।
लाहौर सैकडों हिन्दू एवं अत्यंत अद्भुत मंदिरोंका नगर !
लाहौरमें न्यूनतम लगभग सौ विद्यालय थे । काशीसमान ही वह वेदविद्या एवं शास्त्रविद्याका मायका था । वहां बडे-बडे पंडित थे । उनके नित्यनैमित्तिक आचरणमें कभी खंड नहीं होता था । वहां सर्वत्र वैदिक ब्राह्मण एवं मीमांसक थे । उनके श्रौत यज्ञ चालू रहते थे । स्मार्त यज्ञ यत्र-तत्र भारी मात्रामें होते थे । लाहौर सैकडों हिन्दू एवं अत्यंत अद्भुत मंदिरोंका नगर है !
लवपुरमें (लाहौरमें) श्रीराम मंदिर !
लाहौरमें सैकडों मंदिर हैं । सहस्रों वर्षोंसे ये मंदिर जैसे पूर्वमें थे वैसे ही थे । सर्वत्र नित्य नैमित्तिक पूजन वेदमंत्रोंसे होता था । लाहौरका श्रीराम मंदिर तो मुग्ध करनेवाला था । उसका प्रवेशद्वार अप्रतिम था । आर्यावर्तकी समृद्ध प्राचीन शिल्पकलाएं एवं रामायणके अपूर्व प्रसंग रेखांकित की गई दीवारें, गोपुर एवं नगारखाना था । वेदमंत्रोंसे त्रिकाल रामप्रभूका पूजन होता था । श्रीरामचंद्रकी कालावधिसे लवपुरमें सनातन संस्कृतिके सैकडों हिन्दू मंदिर हैं तथा अनेक स्थानोंपर प्राचीन सनातन संस्कृतिके अवशेष हैं । सनातन संस्कृतिके प्राचीन अवशेषोंके लिए लाहौर पूरे विश्वमें प्रसिद्ध था ।
सुंदरतम मूर्तिवाले इस श्रीराम मंदिरके कारण संपूर्ण लवपुर रामभक्तिमें डूब गया था । राममंदिरका कलश, अपितु मुग्ध करनेवाला था । उसका सौंदर्य देखते ही बनता है । वह महाद्वार, वे गोपुर, कलश एवं वे सुंदरतम मूर्तियां, संपूर्ण लाहोर रामभक्त थे । रामभक्तिमें लीन हो रहे थे ।
१९९२ में हिन्दुस्थानमें अयोध्याके राममंदिरके कारण बवाल हो गया । बाबरीका ढांचा गिर गया । इस समय नवा-ए-वक्तके संपादक लिखते हैं कि हमारा देश इस्लामी होते हुए भी लाहौरका प्राचीन श्रीराम मंदिर सुरक्षित है । श्रीरामपुत्र लव-कुशका लाहौर सुरक्षित है । हमें उसका अभिमान प्रतीत होता है ।
छः मंजिला शॉपिंग कॉम्प्लेक्सके भव्य मंदिर उद्ध्वस्त करनेवाला पाकिस्तान सरकार !
अयोध्याके मंदिरके जितना ही वह मंदिर प्राचीन था । लाहौरका भव्य मंदिर पाकिस्तान सरकारने उद्ध्वस्त किया । कोई अवशेष शेष न रखनेकी दक्षता पाकिस्तानी सरकारने ली । इस मंदिरका क्षेत्रफल लगभग १ एकड था । अब उस मंदिरका अवशेष भी शेष नहीं है । वहां कंत्राटदार छः मंजिला भवन बनेगा । वहां शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनानेकी सरकारकी योजना है । तलमजला तथा बेसमेंट ऐसी वह योजना है । इस बातको हिन्दुस्थान सरकारने पूरी तरह दुर्लक्षित किया । मानो उस श्रीराम मंदिरसे अपना कोई संबंध न हो । इतना ही नहीं, अपितु इस नेहरूप्रणीत धर्मनिरपेक्षतावादी सरकारको मनमें आनंद भी हुआ होगा ।
लाहौर पाकिस्तानमें कैसे गया ?
१. नपुंसक एवं दुर्बल भारत सरकार एवं हिन्दू सनातन संस्कृतिकी ओर जंगली संस्कृतिके रूपमें देखनेवाले अंग्रेजी शिक्षित हिन्दू !
भारत सरकार नपुंसक एवं दुर्बल है । कोई भी लातोंसे मारे । लातोंसे मारनेवाले कहते हैं कि भारत देश गुलामोंका देश है एवं यह उसका प्रारब्ध है । लातें खाना उनका स्वभाव है । वे स्वतंत्र होनेकी पात्रता नहीं रखते । उनके लिए यह असंभव भी है । शत्रुका सामना करनेमें वह कांप उठता है । ब्रिटिशोंने सनातन हिन्दू संस्कृतिमें ऐसी भयावह हीन भावनाका पोषण किया है कि आज आंग्लछायाका अंग्रेज शिक्षित हिन्दू सनातन संस्कृतिकी ओर जंगली संस्कृतिके रूपमें तिरस्कारपूर्ण दृष्टिसे देखता है । ब्रिटिशोंकी छायामें रहनेको अपना भाग्य मानता है ।
२. विभाजनके समय लाहौर किस देशमें रखें, यह हेरैडक्लिफके हाथमें रहना :
आगे ब्रिटिश सरकारके आनेपर वर्ष १८४९ में लाहौर ब्रिटिशोंके पास गया । विभाजनके समय लाहौरका भविष्य रैडक्लिफ नामक ब्रिटिश अधिकारीके हाथमें था । उसके हाथ लाल एवं नीले रंगकी पेन्सिल थी । सामने अखंड भारतका मानचित्र था । उसने मानचित्रमें हिन्दुस्थानमें रखनेवाले नगर अथवा गावोंको नीले एवं पाकिस्तानमें जानेवाले नगरोंको लाल रंगसे दर्शाया । उसकीr दृष्टि लाहौरपर थी । लाल रंग अथवा नीला रंग ! लाहौरका रंग निश्चित करना उसके हाथमें था ।
विभाजनके समय किसी भीr परिस्थितिमें लाहौर पाकिस्तानमें न जाने हेतु हिन्दू धर्माभिमानी नेताओंने अथक प्रयास किए । लाहौर हिन्दुस्थानमें ही हो, ऐसे आधिभौतिक, आध्यात्मिक, आधिदैविक सभी अंगसे निर्विवाद प्रमाण थे । इतिहास वैसा ही था ।
३. दो लक्ष रुपयोंकी घूस देना हिन्दु नेताओंके लिए असंभव होना एवं जिन्नाके लीगद्वारा पैसोंका प्रबंध करनेपर मानचित्रमें लाहौरका पाकिस्तानमें जाना :
पौंडके गटरमें डूबे रैडक्लिफको घूस चाहिए थी । अंग्रेज व्यापारी, उसकी भाषा भी व्यापारी अर्थात केवल पौंड इकट्ठे करना ! संपत्तिके लिए वे संस्कृतिको नष्ट कर डालते हैं । वे सुक्तासुक्त कुछ शेष नहीं रखते । न्याय-अन्यायकी कोई चिंता उन्हें नहीं रहती । ये गोरे लोगोंकी जात ही रिश्वतखोर एवं लिंगपिसाट है । वारेन होस्टींग्ज तथा डलहौजी समान अबतकके आठ वाईसराय भ्रष्टाचारी ही थे । वे भारतसे प्रचंड संपत्ति लूटकर ले गए । प्रत्येकका इतिहास देखनेपर ध्यानमें आएगा कि उनीचंदसमान व्यक्तियोंको फंसाकर उन्होंने कितना प्रचंड पैसा लूटा एवं खाया ! पौंड ही उनके लिए सबकुछ है । पौंड ही उनके लिए मां-बाप एवं भगवान है ! रैडक्लिफको केवल पौंडकी भाषा समझमें आती थी । उसको संस्कृति तथा इतिहाससे कुछ देना-लेना नहीं था । हिन्दू नेताओंके समक्ष उसने स्पष्ट रूपसे पौंडकी मांग की । उसने दो लाख रुपयोंकी रिश्वत मांगी थी । इस संदर्भमें ‘पाकिस्तान हेरॉल्ड‘ लाहौरके समाचारपत्रमें विस्तृत रुपसे समाचार है; तथा नवा-ए-वक्त नियतकालिकमें भी अग्रलेख एवं पांच स्तंभोंका बडा लेख है । हिन्दू नेताओंने अथक प्रयास किए; परंतु उन्हें यह राशि देना असंभव हुआ । जिन्नााके लीगने प्रबंध किया । रैडिक्लिफको मनचाही रिश्वत मिली । तत्काल मानचित्रमें लाहौरको लाल रंगसे दर्शाया गया एवं लाहौर पाकिस्तानमें गया ।
– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (साप्ताहिक सनातन चिंतन, २९.९.२०११)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात