आश्विन कृष्ण पक्ष पंचमी, कलियुग वर्ष ५११६
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काठमाण्डू (नेपाल) – काठमाण्डू विश्वविद्यालयके जनसम्पर्क कक्षके दूसरे एवं तीसरे वर्षके छात्रोंके लिए ५ सितम्बरको हिन्दू जनजागृति समितिके राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेका, ‘हिन्दू तत्त्वज्ञानकी शाश्वतता’पर, व्याख्यान आयोजित किया गया था । इस व्याख्यानसे १८ छात्र तथा ३ व्याख्याता लाभान्वित हुए । प्रारंभमें पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेने इस विषयका तात्त्विक भाग स्पष्ट किया । पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळेने आगे यह बताया कि,
१. जिस प्रकार अग्निमें उष्णता अथवा शक्करमें मिठास शाश्वत होती है, उसी प्रकार सत्य भी शाश्वत होता है । वर्तमानमें प्रत्येक व्यक्ति अनेक समस्याओंसे पीडित है । उसे आनंदप्राप्तिकी तीव्र लगन है ।
२. हिन्दू धर्ममें इस प्रकारका आनंद ढूंढनेके अनेक मार्ग उपलब्ध हैं । ये मार्ग उसी कालानुसार होते हैं । (उदा. ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग, ध्यान-धारणा इत्यादि) इन सभी मार्गोंमें शाश्वत सत्य ढूंढनेके लिए परमेश्वरके साथ एकरूप होना आवश्यक है । उसके लिए कलियुगमें नामजप सीधी एवं सहज साधनापद्धति है ।
३. नामजपके लिए काल, स्थानके निर्बंध नहीं हैं । प्रारंभमें कुलदेवता तथा श्री दत्तका ‘श्री गुरुदेव दत्त’, यह जप करना चाहिए । जिस कुलमें हमारी आध्यात्मिक प्रगति होगी, ऐसे ही कुलमें हमारा जन्म होता है । उस कुलके कुलदेवताका नामजप करना आवश्यक है, साथ ही हमारे सामने अपने पूर्वजोंके कारण अनेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं, उनके लिए ‘श्री गुरुदेव दत्त’का जप करना भी आवश्यक है । नामजप जितना अधिक होगा, वह उतना ही लाभदायक होता है ।
४. जिसप्रकार हमारी ज्ञानेंद्रियां शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंधका ज्ञान देती हैं, उसी प्रकार नामजपसे ईश्वरकी अनुभूति आती है । नामजपके साथ स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन करना भी आवश्यक है । स्वभावदोषोंके कारण केवल हमें ही नहीं, अपितु अन्योंको भी कष्ट होते हैं । उसी प्रकार हमारी अहं वृद्धिके कारण भी होता है । साधनाके कारण हमारे स्वभावदोष एवं अहं न्यून होते हैं तथा हमें आनंद एवं शांतिका अनुभव आता है । हिन्दू धर्ममें यह पद्धति युगोंसे प्रचलित है । साथ ही यह तत्त्व सनातन वैदिक धर्मके अनुसार शाश्वत है । तत्पश्चात पू. डॉ. पिंगळेने उपस्थित व्यक्तियोंद्वारा उपस्थित की गई शंकाओंका निराकरण किया ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात