आश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्थी, कलियुग वर्ष ५११६
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पवनपुत्र हनुमान के बारे में कहा जाता है कि वो अमर हैं । रामायण काल में जन्मे हनुमान सैकड़ों साल बाद महाभारत काल में भी जिंदा थे। कहा जाता है कि महाभारत की लड़ाई से ऐन पहले हनुमान जी पांडवों से मिलने आए थे। महाभारत की लड़ाई के सैकड़ों साल बाद आज के डिजिटल युग में भी हनुमान जी के जिंदा होने की खबर आ रही है। बताया जा रहा है कि श्रीलंका के जंगलों में हनुमान जी की मौजूदगी के संकेत मिले हैं।
'न्यू इंडियन एक्सप्रेस' में छपी खबर के मुताबिक श्रीलंका के जंगलों में कुछ ऐसे कबीलाई लोगों का पता चला है जिनसे मिलने हनुमान जी आते हैं। अखबार ने इन जनजातियों पर अध्ययन करने वाले आध्यात्मिक संगठन 'सेतु' के हवाले से यह सनसनीखेज खुलासा किया है। कहा गया है कि हनुमान जी इस साल हाल ही में इस जनजाति के लोगों से मिलने आए थे। इसके बाद वे हर ४१ साल बाद यानी २०५५ में आएंगे। इस जनजाति के लोगों को 'मातंग' नाम दिया गया है। इनकी तादाद काफी कम है और ये श्रीलंका के अन्य कबीलों से काफी अलग हैं।
सेतु के मुताबिक इस कबीले का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है। हनुमान जी को वरदान मिला था कि उनकी कभी मृत्यु नहीं होगी यानी वे चिरंजीवी रहेंगे। भगवान राम के स्वर्ग सिधारने के बाद हनुमान जी अयोध्या से लौटकर दक्षिण भारत के जंगलों में लौट आए। उसके बाद उन्होंने फिर से समुद्र लांघा और श्रीलंका पहुंचे। उस समय हनुमान जी जब तक श्रीलंका के जंगलों में रहे, इस कबीले के लोगों ने उनकी सेवा की। हनुमान जी ने इस कबीले के लोगों को ब्रह्मज्ञान का बोध कराया। उन्होंने यह भी वादा किया कि वे हर ४१ साल बाद इस कबीले की पीढियों को ब्रह्मज्ञान देने आएंगे।
हनुमान जी जब इस कबीले के साथ रहते हैं, कबीले का मुखिया हर बातचीत और घटना को एक 'लॉग बुक' में दर्ज करता है। सेतु इस लॉग बुक का अध्ययन कर रहा है और इसका आधुनिक भाषाओं में अनुवाद करा रहा है. सेतु ने इस लॉग बुक का पहला चैप्टर अपनी वेबसाइट www.setu.asia पर पोस्ट किया है। इस चैप्टर के जरिये खुलासा हुआ है कि किस तरह हनुमान जी कुछ समय पहले श्रीलंका के इस जंगल में आए थे।२७ मई २०१४ हनुमान जी का इस जंगल में बिताया आखिरी दिन था।
स्त्रोत : आज तक