हिन्दुआें के सर्व मंदिरों में महिलाआें को प्रवेश दिया जाता है । केवल कुछ विशिष्ट परंपराआेंवाले मंदिर इसका अपवाद हैं । कर्मकांड की उपासना में देह से संबंधित नियम और व्यक्ति के स्वास्थ्य को देखते हुए बनाए गए हैं । वे केवल कर्मकांड से संबंधित ही होते हैं । – सम्पादक, हिन्दूजागृति
मुंबई : महाराष्ट्र में महिलाओं को अब मंदिरों में प्रवेश से रोका नहीं जाएगा, क्योंकि मुंबर्इ उच्च न्यायालय ने आज कहा कि पूजास्थलों पर जाना उनका मौलिक अधिकार है और इसकी रक्षा करना सरकार का कर्तव्य है।
सदियों पुरानी परंपरा को तोडने वाले और लैंगिक भेदभाव के विरूद्ध महिलाओं के अभियान के पक्ष में न्यायालयने आज महाराष्ट्र सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय कदम उठाने को कहा कि किसी प्राधिकार द्वारा इस अधिकार पर अतिक्रमण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
वरिष्ठ अधिवक्ता नीलिमा वर्तक एवं सामाजिक कार्यकर्ता विद्या बल द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डी एच वाघेला और न्यायमूर्ति एम एस सोनक की खंडपीठ ने ये निर्देश दिए। इस याचिका में महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर जैसे मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबन्ध को चुनौती दी गई थी।
याचिका में महाराष्ट्र हिन्दू पूजा स्थल (प्रवेश अधिकार) अधिनियम १९५६ के प्रावधानों को लागू करने की मांग की गई। महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि, वह कानून को लागू करके आदेश के अनुरूप सभी कदम उठाएगी। इस कानून के तहत किसी व्यक्ति को किसी मंदिर में प्रवेश से रोके जाने पर दोषी को छह माह की जेल हो सकती है।
न्यायालय के आदेश का स्वागत करते हुए मंदिरों में लैंगिक समानता के अभियान का नेतृत्व कर रही सामाजिक कार्यकर्ती तृप्ति देसाई ने कहा कि वह और उनकी साथी कल ही शनिशिंगणापुर जाएंगी।
दो दिन पहले उच्च न्यायालय की कड़ी टिप्पणियों के बाद राज्य सरकार ने न्यायालय को बताया कि, वह पूरी तरह से लैंगिक भेदभाव के विरूद्ध है और वह कानून लागू करेगी।
उच्च न्यायालय ने बुधवार को टिप्पणी की थी कि यदि पुरुषों को पूजास्थलों पर प्रवेश दिया जाता है तो महिलाओं को भी यह अनुमति मिलनी चाहिए, क्योंकि कोई भी कानून उन्हें ऐसा करने से नहीं रोकता।
बता दें कि, महाराष्ट्र में एक महिला ने पिछले साल महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबन्ध होते हुए भी दशकों पुरानी परंपरा का ‘उल्लंघन’ करते हुए शनिशिंगणापुर मंदिर में पूजा करने के लिए प्रवेश का प्रयास किया था ।
इसके बाद मंदिर समिति ने सात सुरक्षाकर्मियों को निलंबित कर दिया था और गांववालों ने शुद्धीकरण कार्यक्रम किया था । इसके बाद तृप्ति देसाई के नेतृत्व में २६ जनवरी को इस परंपरा के खिलाफ अभियान शुरू किया गया था।
स्त्रोत : खबर एनडीटीव्ही