श्री क्षेत्र शनिशिंगनापुर में, श्री शनिदेव की वेदी पर महिलाओंको प्रवेश का प्रकरण
देहरादून (उत्तराखंड) : कानून अपने स्थान पर है एवं हिन्दू परंपराओंको भी एक विशिष्ट स्थान एवं महत्त्व है। हम धर्मशास्त्र के अनुसार आचरण करते हैं। मंदिरोंकी प्राचीन शास्त्रीय परंपराओंका पालन होना ही चाहिए !
महिलाओंको चाहिए कि, वे अपने अधिकारक्षेत्र में रहें !
वे शनिदेव की वेदी पर न चढें, ज्योतिष एवं द्वारका पीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजी महाराज ने दैनिक सनातन प्रभात के प्रतिनिधि से वार्तालाप करते हुए ऐसा स्पष्ट मत व्यक्त किया।
शनिशिंगनापुर प्रकरण में ३० मार्च को मुंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र शासन को आदेश देते हुए कहा कि, ‘जहां पुरुषोंको प्रवेश मिलता है, वहां महिलाओंको भी प्रवेश मिलना चाहिए। यदि महिलाओंको शनिशिंगनापुर में प्रवेश की अनुमति नहीं देनी है, तो वैसा कानून पारित करें अथवा मंदिर की पवित्रता का प्रश्न हो, तो आगामी दो दिनों में इस पर अपनी भूमिका स्पष्ट करें !’
इस पर शंकराचार्यजी ने अपना उपरोक्त मत व्यक्त किया।
शंकराचार्यजी ने आगे कहा कि, (भूमाता ब्रिगेड की) श्रीमती तृप्ति देसाई नास्तिक हैं एवं वे महिलाओंका प्रतिनिधित्व नहीं करतीं। मंदिरों में जाने का उनका प्रयास एक नाटक है, जिसके पीछे केवल राजनीति है !
मैं महिलाओंके विरोध में नहीं हूं ! – शंकराचार्य
इस अवसर पर द्वारका पीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजी महाराज ने स्पष्ट रूप से ऐसा भी कहा कि, ‘मैं महिलाओंके विरोध में नहीं हूं। स्त्री बाल्यावस्था में देवीसमान होती है। विवाह के उपरांत उसे राजराजेश्वरी का सम्मान दिया जाता है एवं वृद्ध होने पर माता समान होती है। जहां स्त्री की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं; परंतु उन्हें चाहिए कि, वे धर्म के बताए गए अपने अधिकारक्षेत्र में रहें !’
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात