उज्जैन और नासिक में लगने वाले मेले को सिंहस्थ कहा जाता है। जब सूर्य मेष राशि में और गुरू सिंह राशि में होता ,है तब उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ मेले का आयोजन होता है।
सिंहस्थ कुंभ की पौराणिक कथा
श्री स्वामी शंकराचार्य जी के साथ भी महाकुम्भ का ऐतिहासिक सम्बन्ध है। श्री स्वामी आद्यशंकराचार्य जी महराज जब अपने विरोधियों को परास्त करने के लिए भारत भ्रमण कर रहे थे, तब उनकी शिष्य मण्डली में निरन्तर वृद्धि हो रही थी, तो उन्होने उन लाखों अपने उत्साही शिष्यों को आज्ञा दी कि तुम सभी लोग देश के कोने-कोने में पहुंचकर धर्म प्रचार का कार्य सम्पन्न करो।
स्वामीजी के इस आज्ञा से शिष्योंने उदास होकर जिज्ञासा से पूछा कि, अब हमें श्री चरणों का साक्षात्कार फिर कब, कैसे और कहां प्राप्त होगा । साथ ही अपने साथी, सहपाठी और सन्यासी वर्ग से फिर कैसे साक्षात्कार हो सकेगा?
इस पर स्वामी जी ने कहा कि, आप सभी उज्जैन के कुम्भपर्व में एकत्रित हो सकते हैं। तदनुसार सन्यासी मण्डल अपने प्रचार कार्य को आरंभ कर प्रति चौथे वर्ष इन निश्चित स्थानोंपर एकत्रित होने लगे।
कब-कब आैर कहां होता है महाकुम्भ ?
१. जब सूर्य और चन्द्रमा मकर राशि में तथा गुरू वृष राशि में आते हैं, तो प्रयाग में भव्य महाकुम्भ होता है।
२. जब कुम्भ राशि में गुरू हो एवं सूर्य मेष राशि में व चन्द्रमा धनु राशि में होता है, तब हरिद्वार में कुम्भ का आयोजन होता है।
३. सिंह राशि में गुरू और सूर्य एवं चन्द्र कर्क राशि में भ्रमण करते है, तब नासिक (पंचवटी) में कुम्भमेले का आयोजन होता है।
४. जब सिंह राशि में गुरू तथा सूर्य व चन्द्रमा मेष राशि में भ्रमण करें, इस योग में अवनितकापुरी (उज्जैन) में कुम्भ के पर्व को मनाया जाता है।
सूर्य, चन्द्र और गुरू ने की थी अमृत कलश की रक्षा
अमृत घट की रक्षा के समय सूर्य, चन्द्र और गुरू जिन राशियों में स्थित थे, उसी राशि पर इन तीनों के होने पर अब तक उक्त चारों पुण्य क्षेत्रों में कुम्भ महापर्व का स्नान होता है। गुरू बृहस्पति ने राक्षसों से अमृत कुम्भ की रक्षा की, सूर्य ने घड़े को फूटने से बचाया और चन्द्रमा ने घटस्थ अमृत को गिरने से बचाया, इसी कारण इन तीनों ग्रहों का कुम्भ महापर्व से गहरा सम्बन्ध है।
स्त्रोत : वन इंडिया