केरल के पुत्तिंगल मंदिर में लगी भीषण आग के कारण सैकड़ों लोग असमय काल का ग्रास बन गये। इसके साथ ही मंदिर में लगी आग कई सारे प्रश्न भी छोड गयी। मुख्य प्रश्न यह है कि, क्या आतिशबाजी और पटाखों से ऐसी आग की कल्पना की जा सकती है जिसमें जलकर सैकड़ों लोग मारे जाए ? वो भी किसी बंद स्थान में नहीं अपितु एक खुले मंदिर परिसर में ?
केरल के कोल्लम स्थित जिस पुत्तिंगल मंदिर में आग लगी वह एक खुला मंदिर परिसर था जहां आतिशबाजी और बडी मात्रा में पटाखे फोडे जाना सामान्य बात है, फिर ऐसा क्या हुआ जो मंदिर में इतनी भीषण आग लग गर्इ ?
बताया जा रहा है आग के दौरान जोरदार विस्फोट भी हुए और आग इतनी भयंकर थी कि दो-ढाई किलोमीटर तक इसका प्रभाव अनुभव किया गया, समाचारों से प्राप्त तथ्यों का विश्लेषण करने पर ये पचा पाना बेहद कठिन कार्य है कि आग अपने लगी।
मुख्य बात यह कि, देश में जब किसी अन्य संप्रदाय के अराधना स्थल पर आग लगती है तो वो हमेशा ऐसे प्रस्तुत की जाती है जैसे किसी न किसी के द्वारा आग लगाई गर्इ ही होती है किंतु जब मंदिर में कभी आग लगती है तो वो स्वयं लगी होती है, आखिर इसके पीछे क्या तर्क है ? क्या ये सत्य कभी बाहर निकलकर आएगा ?
हमें अच्छी तरह याद है अभी कुछ महीने पहले ऐसे ही हिमाचल में हजारों वर्ष प्राचीन शिव मंदिर जो कि ‘पांडवों’ द्वारा निर्मित किया गया था और संभवतः हिमाचल का सबसे प्राचीन मंदिर था वह पूरी तरह से जलकर खाक हो गया था।
यहां केवल मंदिर ही नही जला था अपिुत उसमें रखी २० के करीब अष्टधातु की मूर्तियां भी जलकर राख हो गर्इ थीं। किंतु जांच की बात तो दूर मीडिया ने इतने महत्त्वपूर्ण मंदिर के बारे में दिखाना भी उचित नहीं समझा ।
हमारी सरकार से मांग है कि वह केरल के पुत्तिंगल मंदिर अग्निकांड की जांच कराए और सत्य को बाहर लाये।