भारत के ३७६ से अधिक प्रवासियों, जिनमें से अधिकतर सिख थे उन्हें कनाडा द्वारा लौटा दिए जाने की घटना के लिए करीब १०२ वर्ष बाद वहां के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडौ १८ मई को औपचारिक रूप से क्षमा मांगेंगे। उस समय के भेदभावकारी कानून के चलते ऐसा हुआ था। ओटावा में बैसाखी के मौके पर ट्रूडौ ने कहा कि कोमागाटा मारु के यात्री कनाडा आने वाले अन्य लाखों प्रवासियों की भांति ही शरण और बेहतर जीवन की चाह में आए थे।
ट्रूडौ ने गुरुद्वारा साहिब ओटावा सिख सोसायटी में कहा, ‘बतौर राष्ट्र हमें उस समय की कनाडाई सरकार के हाथों सिखों के साथ हुए भेदभाव को नहीं भूलना चाहिए। हमें नहीं भूलना चाहिए और हम भूलेंगे भी नहीं।’
जापानी भापजहाज कोमागाटा मारु भारत से ३७६ प्रवासियों को लेकर मई, १९१४ में कनाडा पहुंचा था किंतु तत्कालीन कनाडाई सरकार ने उसे प्रवेश की अनुमती नहीं थी और इन लोगों को भारत लौटना पड़ा। इन प्रवासियों में ज्यादातर सिख थे। दो महीने बाद यह जहाज कोलकाता पहुंचा जहां ब्रिटिश सैनिकों ने यात्रियों पर गोलियां चलाईं और १९ लोग मारे गए।
स्वतंत्रता सेनानियों को लेकर जा रहे जहाज को कनाडा की सरकार ने वैंकूवर बंदरगाह पर २३ मई से २३ जुलाई १९१४ के बीच रोककर रखा था और उसके बाद उसे भारत लौटने पर मजबूर किया था। जब जहाज २९ सितंबर १९१४ को कोलकाता के बजबज नदी बंदरगाह पर पहुंचा तो ब्रिटिश सरकार ने १९ स्वतंत्रता सेनानियों को गोली मार दी और उनमें से अनेक को जेल में डाल दिया।
स्त्रोत : नवभारत टाइम्स