उज्जैन सिंहस्थ पर्व !
सनातन के ‘धर्मशिक्षा फलक ग्रंथ’ का चैतन्य !
उज्जैन में कुंभमेले के प्रसार की सेवा करते समय विविध प्रकार से समाज में स्थित व्यक्तियोंसे संपर्क करने का अवसर मिला। १८.२.२०१६ को मुझे सनातन के ग्रंथ चैतन्य के स्तरपर किस प्रकार कार्य करते हैं ? इसका अनुभव हुआ !
अनेक स्थानोंपर संपर्क करते समय ‘धर्मशिक्षा फलक ग्रंथ’ को देखकर हमें दीवारोंपर लेखन करने की अनुमति मिली तथा बडे फलक लगाने के लिए स्थान भी उपलब्ध हुआ।
१. दुकानदार ने दीवारपर धर्मशिक्षा के विषय का लेखन करने की अनुमति देना : एक दुकानदार के पास संपर्क हेतु जानेपर हमें सनातन संस्था की ओर से आए हैं, ऐसा कहकर आने का उद्देश्य बताया तथा उन्हें ‘धर्मशिक्षा फलक ग्रंथ’ दिखाया। हमने उनसे उनकी दुकान की बाहरी दीवारपर धर्मशिक्षा के विषय में लेखन करने की अनुमति मांगी। तब उन्होंने तुरंत ‘धर्मशिक्षा फलक ग्रंथ’ क्रय कर लिया। उस ग्रंथ को देखकर वे उत्साह के साथ कहने लगें, इस ग्रंथ को मैं अनेक लोगोंको दिखाकर उसके अनुसार कृत्य करने के लिए कहूंगा !
२. दुकान में स्थित लडकी ने ‘धर्मशिक्षा फलक ग्रंथ’ देखकर दीवार रंगने की अनुमति प्राप्त करवाना : उपरोक्त संपर्क करने के पश्चात हम दूसरी एक दुकान में गए। वहां एक लडकी थी। हमने उसे हमारा उद्देश्य बताकर ‘धर्मशिक्षा फलक ग्रंथ’ दिखाया। उस लडकी ने उसे देखकर हमें वापस वहां न आना पडे; इसलिए उसने अपने काकाजी को दूरभाष कर दीवार रंगाने की अनुमति प्राप्त करवा दी। यहां भी हमने कुछ नहीं किया था, अपितु ग्रंथ में स्थित चैतन्य ही कार्य कर रहा था !
३. मंदिर के पुजारी ने २ दीवारोंपर धर्मशिक्षा के विषय में लेखन करने के लिए कहना : हम एक मंदिर के पुजारी के पास गए थे। ग्रंथ दिखानेपर वे कहने लगे, मैं इस ग्रंथ को २ दिन मेरे पास रखकर उसका अध्ययन करूंगा तथा इसमें से कौन से फलक सिद्ध कर हम मंदिर में लगा सकते हैं, यह देखकर आपको सूचित करूंगा। उन्होंने हमें मंदिरोंकी २ दीवारोंपर धर्मशिक्षा के विषय में होनेवाली चुनी हुई जानकारी लिखने के लिए कहा !
४. ‘धर्मशिक्षा फलक ग्रंथ’ को देखकर, प्रभावित होकर अन्य ग्रंथ भी खरीदनेवाले गोशाला के प्रमुख ! : हमने एक गोशाला के प्रमुख से संपर्क कर उनको संस्था के कार्य से अवगत कराया तथा उन्हें यह ग्रंथ दिखाया। इस ग्रंथ को देखकर वे अत्यधिक प्रभावित हुए। उन्होंने अपनी पत्नी को यह ग्रंथ दिखाया, वे भी प्रभावित हुईं। उन्होंने हमें उनका पूरा आश्रम दिखाकर महाप्रसाद के लिए भी बुलाया। दूसरे दिन पू. पिंगळेकाकाजी ने उन्हें संपर्क करनेपर वे बहुत ही प्रभावित हुए। उन्हें संस्थाद्वारा प्रकाशित अन्य ग्रंथ भी क्रय किए !
प.पू. गुरुदेवजी ने इस ग्रंथ के माध्यम से हम से सेवा करवाई इसलिए हम उनकी चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञ हैं !
– श्री. निरंजन चोडणकर, उज्जैन
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात