भारत की महान वैदिक विज्ञान परंपरा से जापान काफी प्रभावित है । समाचार के अनुसार, काशी व दक्षिण के १५० पंडितों का दल शतचंडी संहिता महारुद्र यज्ञ के लिए जापान ले जाया जा रहा है, ताकि जापान की नई पीढी को एक सकारात्मक वातावरण उपलब्ध कराया जा सके ।
आपको बता दे कि, जापानी प्रधानमंत्री शिंजो अबे को प्रधानमंत्री मोदी अपने संसदीय क्षेत्र काशी लेकर गए थे जहां उनका परंपरागत भारतीय पद्धती से स्वागत-सम्मान हुआ और उन्हें काशी की महान आरती परंपरा के दर्शन कराए थे । जब जापान के प्रधानमंत्री भारत आए थे तो उन्होंने मोदी जी के समक्ष अपने देश की तीन प्रमुख समस्याओं का उल्लेख किया था ।
वह थी प्राकृतिक आपदा, जापानी लोगों में घर करती विशाद की प्रवृत्ति और वहां के युवाओं में आत्महत्या की बढती समस्या । एक अति विकसित राष्ट्र जब याचक भाव से इन समस्याओं के समाधान के लिए भारत की ओर टकटकी लगाए देख रहा था तो प्रधानमंत्री मोदी ने भी दो कदम आगे बढकर इसका अाध्यात्मिक हल सुझाया था ।
अमरीका के टैक्सास प्रांत में स्थापित ‘वैदिक यज्ञ सैंटर’ की पहल पर और जापान सरकार के अनुरोध पर काशी और दक्षिण के १०८ प्रकांड वैदिक पंडित, २ आचार्य, १० वैकल्पिक पंडित और उनके १५ सहायक शुक्रवार, २१ अक्टूबर को जापानी समयानुसार सुबह ८ बजे से इस महारुद्र यज्ञ की अलख जगाएंगे जो कि रविवार, २३ अक्टूबर २०१६ के रात ९ बजे तक निर्बाध गति से चलेगा ।
सूत्रों के अनुसार, इन १५० पंडितों की जापान यात्रा का सारा खर्च भी जापान सरकार ही उठा रही है, यज्ञ कराने वाले पंडितों के पासपोर्ट बन गए हैं और उन्हें वीजा के लिए जापान दूतावास भेजा जाना है ।
इस प्रतिनिधि मंडल में शामिल काशी के एक प्रकांड पंडित ने इस वैदिक यज्ञ की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए कहा कि, ’यज्ञ से वृष्टि, वृष्टि से अन्न, अन्न से प्रजापालन का यह चक्र हजारों वर्षों से चलता आया है, इसमें नया क्या है ?’
संदर्भ : रिव्होल्ट प्रेस