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उज्जैन सिंहस्थपर्व के पहले अमृत (शाही) स्नान के लिए एक भी शंकराचार्य नहीं !
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संतों के पहले ही श्रद्धालुआें ने स्नान किया !
महाकाल सरिक्षिप्रा गतिस्कवा सुनिर्मला ।
उज्जैनियम् विशालाक्षी वसाह कस्या नरोचते ॥ – स्कंदपुराण
अर्थ : यहां महाकाल का देवस्थान है । यहां क्षिप्रा नदी है तथा यह निश्चित है, कि यहां मोक्ष मिलेगा । ऐसे स्थान पर विशालाक्षी प्रिय पत्नी, कौन निवास करने के इच्छुक नहीं होंगे ?
उज्जैन (मध्य प्रदेश) – जहां श्री महाकालेश्वर एवं क्षिप्रा नदी है, वहां निश्चितरूप से मोक्ष मिलेगा, यह ब्रह्मर्षि वसिष्ठ ऋषिजी द्वारा अपनी पत्नी अरुंधती को बताया हुआ श्लोक स्कंदपुराण में है । उज्जैन के इस मोक्षदायी क्षेत्र में २२ अप्रैल को सिंहस्थपर्व के उपलक्ष्य में विश्वभर से आए करोडों श्रद्धालु एवं संत-महंतों ने पहला अमृत (शाही) स्नान कर अमृततुल्य तृप्ति का अनुभव किया । संतों के पदस्पर्श से क्षिप्रा नदी भी कृतार्थ हुई । इस समय सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से देशभर से आए हुए विविध अखाडे, खालसे, संप्रदाय एवं आध्यात्मिक संस्थाआें के महंत, महामंडलेश्वर, संत, साधु, नागा साधु एवं श्रद्धालुआें का विनम्रतापूर्वक स्वागत किया गया ।
कडी धूप के कारण श्रद्धालुआें की संख्या घटी !
उज्जैन के सिंहस्थपर्व की अवधि में कडी धूप के कारण साधु-संत, साथ ही श्रद्धालुआें की संख्या अपेक्षा के अनुरूप न्यून होने की जानकारी उपस्थित पुलिस ने दी । कडी धूप ना होती, तो श्रद्धालुआें की संख्या इससे भी अनेक गुना बढी होती । महाराष्ट्र की तुलना में मध्य प्रदेश शासन ने सिंहस्थपर्व की व्यवस्था अत्यंत अच्छी रखी है तथा एक भी साधु-संत नाराज न हों; इसलिए वरिष्ठ अधिकारियों से लेकर कर्मचारियोंतक सभी लोग योग्य सतर्कता का पालन कर रहे हैं । साधु-संतों को उनकी अपेक्षाआें के अनुरूप सुविधाएं दी जा रही हैं ।
प्रथा-परंपराआें को दूर रखकर संतों के पहले श्रद्धालुआें ने स्नान किया !
स्नान का अवसर प्राप्त करने के लिए दूर से आए श्रद्धालुआें ने रात के १२ बजने के पहले से ही क्षिप्रा के तट पर अपना स्थान बनाया था । उसके कारण पुलिस के लिए श्रद्धालुआें पर नियंत्रण रखना कठिन हो रहा था । रामघाट, नृसिंह घाट एवं अन्य घाटों का परिसर डेढ किलोमीटर का होने के कारण एक ही स्थान पर भीड नहीं हुई । सभी को स्नान का अवसर सहजता से मिला; परंतु सिंहस्थपर्व में ब्राह्ममुहूर्त पर विविध अखाडों के संतों के स्नान करने के पश्चात दोपहर २ बजने के पश्चात सर्वसामान्य श्रद्धालुआें को स्नान का अवसर था; परंतु श्रद्धालुआें ने काल-समय को न देखते हुए संतों के पहले ही स्नान कर इस प्रथा-परंपरा को तोड दिया । मध्य प्रदेश शासन ने भी महाराष्ट्र शासन की भांति पहले संतों का स्नान हुए बिना श्रद्धालुआें को न छोडने की कार्यवाही प्रभावशाली रूप में नहीं अपनाई । केवल श्रद्धालुआें को सैनिकों की सहायता से रामघाट को छोडकर अन्य घाटों पर स्नान के लिए भेजने की औपचारिकता पूरी कर दी गई ।
एक भी शंकराचार्य नहीं आए !
१२ वर्षों में एक बार आनेवाले सिंहस्थपर्व के लिए एक भी शंकराचार्य उपस्थित नहीं रहे । हाल ही में महाराष्ट्र में संपन्न सिंहस्थपर्व के लिए शारदा एवं द्वारका पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद सरस्वती पूर्णकालतक उपस्थित थे । साथ ही नासिक के अभिभावकमंत्र श्री. गिरीष महाजन नासिक के प्रत्येक पर्व में स्वयं उपस्थित रहकर सुव्यवस्था संभाल रहे थे ।
शैव एवं वैष्णव अखाडों का अमृत स्नान !
सवेरे ५.१५ बजे शैव अखाडों में से श्री पंच दशनाम जुने अखाडे के (दत्त अखाडे के) साधुआें ने रामघाट पर पहले अमृत स्नान का गौरव प्राप्त किया । तदुपरांत क्रमशः श्री पंचायती आह्वान अखाडा, श्री पंचायती अग्नि अखाडा, श्री तपोनिधी निरंजनी अखाडा, श्री पंचायती आनंद अखाडा, श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाडा, श्री पंचअटल अखाडा, श्री पंचायती बडा उदासीन अखाडा, श्री पंचायती नया उदासीन अखाडों ने सवेरे ११.३० बजे तक रामघाट पर स्नान किया, अपितु वैष्णव अखाडों में से श्री निर्मोही अखाडा, श्री दिगंबर अखाडा एवं श्री निर्वाणी अखाडों ने दोपहर १२ बजेतक अमृत स्नान किया, तो सब से अंत में श्री निर्मल अखाडे ने दोपहर १२.४५ बजे स्नान किया । सभी अखाडों ने अमृत स्नान करने के पूर्व अपने अखाडों के देवता तथा शस्त्रदेवताआें का विधिवत पूजन कर उनको स्नान कराया । तदुपरांत महंत, महामंडलेश्वर एवं उसके पश्चात साधु एवं नागासाधुआें ने अपने शस्त्रास्त्रोंसहित स्नान किया ।
इस समय मध्य प्रदेश पुलिस, अर्धसैनिक बल, शीघ्र कृति दल, नागरी सुरक्षा दल, पानी में डूबने से बचाने के लिए भारत सेवाश्रम संघ के स्वयंसेवक, साथ ही राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन दल के सैनिक नौकाआेंसहित सुसज्जित थे ।
सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से स्वागत !
प्रात: अमृत स्नान के मार्ग पर शोभायात्रासहित अखाडों के साधु-संत आते समय सनातन के साधक एवं हिन्दू जनजागृति समिति के कार्यकर्ताआें की ओर से हाथ में कपडे से बने स्वागत के फलक लेकर भावपूर्ण स्वागत किया गया था । २१ अप्रैल को रात के २ बजे से साधक एवं कार्यकर्ता कुंभक्षेत्र में स्वागत के लिए आए थे; परंतु पुलिस के असहयोग के कारण कुछ समय समस्या हुई । श्री महाकालेश्वर की कृपा से सवेरे अमृत स्नान के लिए जानेवाली शोभायात्राएं आरंभ होने पर संत एवं श्रद्धालुआें का स्वागत करने का अवसर मिला ।
सिंहस्थपर्व में धर्मशिक्षा के अभाव के कारण होनेवाले अयोग्य कृत्य
१. उज्जैन के सिंहस्थपर्व के पहले अमृत स्नान के लिए आए हुए नागा साधु लोगों को आकर्षित करने हेतु श्रद्धालुआें के समक्ष आंखों पर काला उपनेत्र (गॉगल) लगाना, गांजा पीते हुए स्वयं के छायाचित्र विदेशी व्यक्तियों को निकालने देना, नग्न खडे रहना, उनसे पैसे मांगना तथा अन्य विकृत प्रकरणों में लिप्त थे ।
२. एक महामंडलेश्वर ने अपने शरिर पर बहुत से आभूषण धारण किए थे । वे सवेरे जब स्नान के लिए जा रहे थे, तब वे जमाना चाहे कुछ भी कहे; पर गोल्डनबाबा तो है शिवजी का दीवाना ! इस हिन्दी गाने पर नाच रहे थे । यह देखकर मार्ग से जानेवाले लोग उनका उपहास उडाकर हंस रहे थे ।
३. एक बहुरूपिए ने भगवान शिवजी का वेश धारण किया था ।
क्षणचित्र
१. अमृत स्नान के लिए घाट की ओर जानेवाले मार्ग पर श्रद्धालुआें की भीड थी । साधु-संतों की शोभायात्रा घाट की ओर जाए, इसके लिए इस मार्ग को खुला रखने के लिए पुलिस ने श्रद्धालुआें से धक्कामुक्की कर बल प्रयोग किया, साथ ही कुछ स्थानों पर घाट की ओर जानेवाले मार्ग से अर्धसैनिक बल के कर्मी श्रद्धालुआें को जाने नहीं दे रहे थे ।
२. प्रातः ५ बजे विविध आखाडों के महंत एवं महामंडलेश्वर अमृत स्नान करने के लिए घाट पर जाते समय अनेक भक्तों के साथ विविध प्रकार के रथों से जा रहे थे ।
३. सवेरे घाट पर स्नान करने के लिए नागा साधुआें का आगमन हुआ । उस समय पुलिस ने नदी में स्नान करनेवाली श्रद्धालु महिलाआें को खींचकर बाहर निकाला ।
४. घाट पर व्यवस्था के लिए तत्पर पुलिस कर्मी ने भी अपना कर्तव्य निभाते हुए नदी में स्नान किया ।
५.परमहंस नित्यानंद स्वामी के अखाडे में अनेक विदेशी नागरिक सम्मिलित हुए थे ।
६. श्रद्धालुआें द्वारा उत्स्फूर्तता से प्रत्येक अखाडे के महंत, महामंडलेश्वर एवं नागा साधुआें के स्नान के समय हर हर महादेव, जय महाकाल का जयघोष किया जा रहा था ।
७. घाट के दोनों ओर जय गुरुदेव लिखे हुए ध्वज बडी मात्रा में लगाए गए थे ।
८. कुछ नागा साधु श्रद्धालुआें को तलवारबाजी एवं अन्य साहसी खेलों के प्रात्यक्षिक दिखा रहे थे ।
९. घाट के एक ओर चबूतरे पर शिवपिंडी थी, उस पिंडी में श्रद्धालुआें के पैर लग रहे थे । सनातन के एक साधक ने देखने पर संबंधित श्रद्धालुआें को उनका अयोग्य कृत्य उनके ध्यान में लाकर दिया तथा उससे होनेवाला अनादर रोका । (सनातन के ऐसे साधक ही हिन्दू धर्म की वास्तविक शक्ति हैं ! – संपादक) सनातन के साधक एवं हिन्दू जनजागृति समिति के कार्यकर्ता को घाट की ओर जाने के समय एक पुलिसकर्मी ने उनको रोका । तब साधकों ने उससे आगे जाने देने के लिए निवेदन किया; परंतु उसने उनको आगे नहीं जाने दिया । तब साधक भी वहीं पर बाजू में रुक गए । उस समय उस पुलिसकर्मी ने साधकों से बात करते हुए उनको बताया कि सिंहस्थपर्व की यह सेवा हमसे श्री महाकाल ही करवा लेते हैं; इसीलिए वह पूरी होती है । आप लोग सात्त्विक दिखते हैं, यह आपके मुखमंडल से ही समझ में आता है । कुछ समय पश्चात अनेक नागरिक पुलिस की अनदेखी करते हुए घाट की ओर जा रह थे, उसे देखकर उस पुलिसकर्मी ने स्वयं ही साधकों को घाट की ओर जाने के लिए कहा ।
स्त्राेत : दैनिक सनातन प्रभात