हनुमान मंदिर गिराने पर, आदिवासियोंने वन-कर्मचारियोंको पीटा
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न्यायालय के आदेश के पश्चात भी अन्य धर्मियोंके अवैध प्रार्थनास्थलों पर कार्रवाई न करनेवाला प्रशासन हिंदुओंके मंदिरोंपर अनुमति न होते हुए भी कार्रवाई करता है, यह हिंदुओंके लिए लज्जास्पद !
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अनुमति के बिना कार्रवाई करनेवालोंपर शासन कार्रवाई करे तथा मंदिर का पुनः निर्माण करे, यह हिंदुओंकी अपेक्षा !
जलगांव : यहां सातपुडा पर्वत शृंखला के मोहरद शिवार क्षेत्र में आदिवासी बंधुओंद्वारा निर्मित श्री हनुमान मंदिर को वन-कर्मचारी श्री. के.आर. साळुंखे ने वनविभाग की अनुमति लिए बिना ही कर्मचारियोंकी सहायता से गिरा दिया ! (हिंदुओं, आपके ‘असंगठित’ होने से ही मंदिर गिराने की घटनाएं बार-बार हो रही हैं, यह जान लें ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
इस समय ३०० से ५०० के गुट में आए आदिवासियोंने वन-कर्मचारियोंको पीटा !
जब वन-कर्मचारी मंदिर गिरा रहे थे, तब कुछ श्रद्धालु रो रहे थे, यह प्रत्यक्षदर्शियोंने बताया। (श्रद्धालुओं, रोने की अपेक्षा लडने से ही मंदिरोंकी रक्षा होगी ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
२२ अप्रैल को होनेवाली हनुमान जयंती के अवसर पर ग्रामवासियोंने वहां भंडारे का भी आयोजन किया था; परंतु मंदिर को ही गिरा दिए जाने से अब भंडारे का क्या होगा, यह इन श्रद्धालुओंके सामने यह प्रश्न है !
वनाधिकारी काझी की मगरूरी !
इस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता एवं वनविभाग के अधिकारी काझी में बहुत विवाद हुआ। काझी क्रोधित एवं आक्रामक हो गए थे। मेरा कौन, क्या कर लेगा, ऐसा संघ के कार्यकर्ताओंसे उन्होंने कहा। (ऐसे मगरूरोंपर शासन कार्रवाई, करेगा क्या ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात