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आेंकारेश्‍वर ज्योतिर्लिंग पर किए जानेवाले वज्रलेप से वहां प्राकृतिक रूप से आनेवाला पानी बंद होने के कारण संत क्रोधित !

धर्मकार्य में धर्म के प्रति अज्ञानी लोगों के हस्तक्षेप करने की घटनाएं बढ ही रही हैं इसे रोकने हेतु हिन्दू राष्ट्र की स्थापना अनिवार्य है ।

खांडवा (मध्य प्रदेश) : १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक आेंकारेश्‍वर के ज्योतिर्लिंग का अपक्षरण (erosion) रोकने के लिए वज्रलेप की प्रक्रिया चालू है । वज्रलेप करने के कारण ज्योतिर्लिंग के चारों ओर से पानी भरे रहने की प्राकृतिक प्रक्रिया पूर्ण रूप से रुक गई है । उसके कारण वहां के संतों ने अपना आक्रोश व्यक्त किया है । उन्होंने इस सूत्र को धार्मिक व्यासपपीठ पर उपस्थित करने की सिद्धता आरंभ की है । १२ ज्योतिर्लिंगों में से केवल २ स्थानों पर ही इस प्रकार से पानी भरा रहता था । उनमें से एक आेंकारेश्‍वर एवं दूसरा महाराष्ट्र का त्र्यंबकेश्‍वर ज्योतिर्लिंग है । स्थानीय लोगों के अनुसार, आेंकारेश्‍वर ज्योतिर्लिंग की प्राकृतिक विशेषता समाप्त हो गई है ।

१. आेंकारेश्‍वर ज्योतिर्लिंग का अपक्षरण (erosion) रोकने के लिए वज्रलेप करने की यह दूसरी बारी है । इसके कारण यह विवाद पुनः उभर कर आया है ।

२. वर्ष २००४ में प्रथम जिलाधिकारी डी.डी. अग्रवाल के कार्यकाल में वज्रलेप करते समय विवाद उत्पन्न हुआ था ।

३. उस समय संतों ने आंदोलन चलाया था । उससे वज्रलेप रुकवाने के लिए एक समिति की स्थापना की गई थी । तदुपरांत चारों शंकराचार्यों से मार्गदर्शन लिया गया था । तब आेंकारेश्‍वर ज्योतिर्लिंग के मूल स्वरूप के साथ छेडछाड न करना तथा आवश्यकता पडने पर स्फटिक का कवच लगाने का सुझाव दिया गया था । इसके लिए ३० लक्ष रुपयों के व्यय की संभावना के कारण शासन ने शंकराचार्यों का समुपदेश लेकर इस विषय को टाल दिया था ।

४. सिंहस्थपर्व प्रारंभ होने पर अपक्षरण (erosion) रोकने के लिए शासन ने पुनः समाधान आरंभ किया; किंतु इस बार शासन ने शंकराचार्यों का दृष्टिकोण नहीं लिया अथवा ऐसा कहें कि, शासन को उनका दृष्टिकोण लेना आवश्यक नहीं लगा । उन्होंने स्वयंके अनुसार, ज्योतिर्लिंग के चारों बाजुआें से वज्रलेप किया । उससे ज्योतिर्लिंग की प्राकृतिक विशेषता नष्ट हो गई, इससे मंदिर के पुजारी भी दुखी हैं ।

अपना काम सुचारु रूप से न करनेवाले शासकीय अधिकारी धर्म के संदर्भ में निर्णय कैसे ले सकते हैं ? – महंत मंगलदास महाराज

महंत मंगलदास महाराज एवं अन्य संतोने अपना क्रोध व्यक्त करते हुए कहा कि, शासकीय अधिकारी अपने काम तो सुचारु रूप से कर नहीं सकते, तो उनको धर्म के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार किसने दिया ? वज्रलेप करने के पूर्व शंकराचार्यों का मत लेना आवश्यक था । वज्रलेप करने के कारण प्राकृतिक रूप से आनेवाला पानी बंद हो गया है । इस घटना का प्रत्येक स्तर पर विरोध किया जाएगा । धर्म के संदर्भ में निर्णय करने का अधिकार केवल शंकराचार्यों को है ।

प्राकृतिक रूप से नर्मदा का पानी ज्योतिर्लिंगतक आता है !

आेंकारेश्‍वर पर्वत को शिवस्वरूरुप माना जाता है । उसके चारों ओर पानी है । उसी प्रकार ज्योतिर्लिंग के चारों ओर पानी है । यह पानी कहां से आता है, यह अभीतक किसी को ज्ञात नहीं है । इस संदर्भ में यह कहा जाता है कि, नर्मदा का पानी प्राकृतिक रूप से ज्योतिर्लिंगतक पहुंचता है ।

संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात

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