समझौता ब्लास्ट में एनआईए पर राजनैतिक दबाव की छाप साफ देखने को मिल रही है। ब्लास्ट किसने और कैसे किए से ज्यादा जोर इस बात पर दिखाई पड रहा था कि ये ब्लास्ट अभिनव भारत से जुडे लोगों ने किए हैं। असीमानंद और प्रज्ञा दो ऐसे चेहरे थे, जो भगवा पहनते भी थे। इनका इस्तेमाल आरएसएस और वीएचपी तक पहुंचने के लिए किया जा रहा था।
इधर, सुशील कुमार शिंदे, पी. चिदंबरम, दिग्विजय सिंह जैसे तमाम कांग्रेसी नेताओं की बातें इस ओर इशारा कर रही थीं कि हिंदू आतंकवाद या भगवा आतंकवाद को किसी तरह लोगों की जुबान पर चढा दिया जाए। एटीएस और एनआईए सभी की जांच का आधार अपराध-स्वीकृति बयान और एक बाइक दिखाई पड़ती है।
इधर, एनआईए की जांच इस बात पर टिकी रही कि सिम कार्ड एक ही दुकान से खरीदे गए, एक जैसे एक्सप्लोसिव का इस्तेमाल किया गया। कई गवाहों के अपराध-स्वीकृति बयानों के आधार पर ये कहानी बुनी गई जो इस ओर इशारा कर रही थीं कि कैसे असीमानंद और कर्नल पुरोहित के मन में आतंकवादी घटनाओं में हिंदुओं के मारे जाने का गुस्सा था। ये बातें किसी मीटिंग में कहना भी एक आधार बनाया गया। गवाहों ने ये कहा कि उनके सामने इस तरह की बातें कही गईं। गवाहों के जो अधिकारिक बयान सामने आए उसमें उन्होंने समस्त मीटिंग्स में मौजूद रहने की बात भी कही, लेकिन अब ये गवाह इस जांच की सच्चाई बयान कर रहे हैं।
इस पूरी जांच में गवाहों के पीछे हटने के बाद नया मोड़ आ गया है। कैप्टन नितिन जोशी जो कि इस घटना के महत्वपूर्ण गवाह हैं, उन्होंने जांच पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। नितिन जोशी के मुताबिक उनके साथ मारपीट की गई। उनके परिवार और उन्हें झूठे मामलों में फंसाने की साजिश रची गई। उन पर दबाव बनाया गया कि वो अपने बयान में ये कहें कि उन्होने कर्नल पुरोहित के पास आरडीएक्स देखा था, साथ ही बम का बदला बम से लेने की बात कही थी। दबाव में नितिन जोशी ने ये बयान दिया भी। जब नितिन जोशी पर सवाल खडे किए गए कि आखिर वो अब तक इस मसले पर चुप क्यों रहे, तो उन्होंने बताया कि वो पहले भी २०१० में मानवाधिकार आयोग में इस बारे में शिकायत कर चुके हैं। वो बेहद डरे हुए थे, इसीलिए इस मामले में कुछ भी कह नहीं पा रहे थे।
नितिन ऐसे अकेले गवाह नहीं हैं, जो जबरदस्ती बयान दिलवाए जाने की बात कह रहे हैं। इस मामले के अब तक १९ गवाह इसी तरह की बात कह चुके हैं। एक बात बहुत साफ है कि जांच एजेंसियां भगवा आतंकवाद की एक स्क्रिप्ट लिखने में जुटी हुई थीं। ये राजनीति का एक ऐसा घृणित स्तर है जो इस ओर इशारा करता है कि हमारे देश में मतदाताओं की मानसिकता को लेकर राजनैतिक दल क्या सोचते हैं।
सवाल ये भी उठ रहा है कि अब गवाह खुद को सुरक्षित कैसे महसूस कर रहे हैं, या एनआईए पर वर्तमान सरकार का भी तो दबाव हो सकता है? ये सवाल उठना लाजिमी है, लेकिन ये भी सोच-विचार करने वाली बात है कि इसी सरकार को रोकने के लिए ये पूरी कहानी बुनी जा रही थी। शरद कुमार अमेरिका से वापस आते ही कह चुके हैं कि कर्नल पुरोहित के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले हैं। ये बात अपने आप में कई गहरे सवाल खड़े करती है।
यही नहीं इधर, आर्मी के एक सर्विंग ऑफिसर को गिरफ्तार किया गया और उसे यातनाएं तक दी गई। उनके अपराध-स्वीकृति बयान को भगवा आतंकवाद का आधार बनाया गया और अब जांच एजेंसी कह रही है कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले हैं।
ये बात सही है कि असीमानंद और साध्वी प्रज्ञा जैसे चेहरों का उग्र हिंदुत्व से कुछ जुड़ाव दिखता है, लेकिन ये भी सच है कि इस उग्र हिंदुत्व को पहले भगवा आतंकवाद का जाम पहनाया गया और फिर इन चेहरों को आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद से जोड़ने की कोशिश की गई। इस कोशिश में जांच एजेंसियां उस वक्त भी नाकाम रही लेकिन जांच का ये तरीका इन संगठनों को आतंकी संगठन बताने की कोशिश को बेनकाब कर रहा है।
– डॉ. प्रवीण तिवारी
स्त्रोत : आयबीएन लाइव्ह