उज्जैन (मध्य प्रदेश) सिंहस्थ कुंभपर्व विशेष – ‘पंचक्रोशी यात्रा’ !
उज्जैन : उज्जैन में पुराणकाल से अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही पंचक्रोशी यात्रा का प्रारंभ हुआ है तथा उसके लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु उज्जैन आ रहे हैं।
श्रद्धालुओं की ३० अप्रैल को भगवान नागचन्द्रेश्वर महादेव मंदिर के निकट से निकली शोभायात्रा सायंकाल होने के पहले १२ कि.मी. पर स्थित श्री पिंगलेश्वर महादेव मंदिर के निकट पहुंची। इस पहले चरण में लगभग २ लाख ५० सहस्र श्रद्धालु रात के १२ बजे तक पहुंचे थे। सिर पर दाल, चावल एवं आटे का प्रसाद बनाकर कायावरोहणेश्वर महादेव मंदिर की दिशा की ओर भगवान महाकाल का जयघोष करते हुए बडी संख्या में श्रद्धालु आगे आ रहे हैं।
पहले चरण में श्रद्धालुओं को अल्प कष्ट हों; इसलिए जिला प्रशासन ने स्वयंसेवी संगठनों की सहायता ली है।
श्री पिंगलेश्वर महादेव मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के विश्राम के लिए अस्थायी छावनियां, साथ ही स्वास्थ्य केंद्रों का प्रबंध किया गया है। यह यात्रा करते समय पदयात्रियों के पैरों में फोडे आ गए हैं। उनके उपचार के लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से २ सहस्र किलो वैसलीन, साथ ही मरहम का वितरण किया गया है। प्रशासन ने आनेवाले ५ दिनों तक श्रद्धालुओं के लिए यह प्रबंध किया है।
देश की सबसे बडी पंचक्रोशी यात्रा अपने दूसरे चरण में श्री पिंगलेश्वर महादेव मंदिर से २३ किलोमीटर की दूरी पर स्थित कायावरोहणेश्वर महादेव मंदिर के निकट पहुंची है।
पंचक्रोशी यात्रा महिमा
पंचक्रोशी यात्रा महिमा यह है कि, एक बार माता पार्वती ने भगवान महादेवजी से विनती की कि आप मुझे ऐसे स्थान दिखाएं जो अत्यधिक आनंद देनेवाला एवं प्रलय में भी नष्ट न होनेवाला हो !
उस पर श्री महादेव ने बताया कि स्वर्ग से अधिक सुंदर, रमणीय, भक्ति-मुक्ति देनेवाला ‘महाकाल वन’, वह स्थान है। जहां देवता-गंधर्व सिद्धि एवं मुक्ति की इच्छा से निवास करते हैं। इस स्थान पर महापातक नष्ट होता है। गंगा, कुरुक्षेत्र एवं त्रिपुष्कर, इन क्षेत्रों में भी जो गति नहीं मिलती, वह यहां मिलती है।
‘महाकाल वन’ की महिमा सुनने पर माता पार्वती ने ‘महाकाल वन’ देखा तथा श्री महादेव से इस वन की रक्षा करने का वरदान मांगा।
उसके अनुसार विल्वेश्वर, कायावरोहणेश्वर, पिंगलेश्वर एवं दुर्दरेश्वर ये ४ शिवरूप द्वारपाल स्थापित किए गए, जे धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष प्रदान करते हैं। इन चारों मंदिरों के अंतर्गत ८४ महादेव मंदिरों की शृंखला है।
स्कंदपुराण के अनुसार अनंतकाल तक काशी में निवास करने की अपेक्षा इस पंचक्रोशी यात्रा का पुण्यफल उससे अधिक है। ११८ कि.मी. की परिक्रमा पूरी होने पर यह यात्रा पूरी होती है। यह यात्रा वैशाख कृष्ण दशमी से वैशाख अमावस्या तक चलती है।
अर्थात इस वर्ष यह यात्रा १ मई से ६ मई तक होनेवाली है।
स्त्रोत: दैनिक सनातन प्रभात