उज्जैन : आज के इस काल में पर्यावरण संरक्षण कर पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त करने की सर्वाधिक आवश्यकता है !
पार्थिव शिवलिंगों का निर्माण करने से केवल आध्यात्मिक लाभ ही ना होकर उस काली मिट्टी में जिवाश्म होने के कारण वृक्ष एवं पौधों की शीघ्र वृद्धी एवं जलशुद्धी के लिए भी उस का लाभ होनेवाला है, ऐसा प्रतिपादन सिंहस्थ महापर्व के काल में पार्थिव शिवलिंग निर्माण मिशन के संत श्री विष्णु प्रभाकर उपाख्य दद्दाजी ने किया ।
१. पर्यावरण रक्षासहित देश में बढते हुए धर्मांतर को रोकने का भी उनका उद्देश्य है ।
२. इस के पहले ४ करोड से अधिक पार्थिव शिवलिंगों का निर्माण किया गया था । इस पार्थिव शिवलिंग निर्माण के कार्य में सभी जाति-वर्गों के लोग एकत्रित रुप से सम्मिलित हुए थे । वे सब, संघटित रुप से पूजन, हवन एवं यज्ञ में सम्मिलित हुए थे । इस सिंहस्थ में ५.२५ करोड शिवलिंगों के निर्माण का लक्ष्य था । श्रद्धालु इस में उत्साह के साथ सम्मिलित हुए तथा इस में १७ करोड ७ लाख २ सहस्र पार्थिव शिवलिंगों का निर्माण किया गया ।
३. पार्थिव शिवलिंग की मिट्टी का उपयोग भक्त अपनी वाटिकाओं में पौधे लगाने के लिए कर रहे हैं तथा उस के लिए ट्रॉलीयां भर-भर के यहां से मिट्टी ले जा रहे हैं ।
४. पर्यावरण संरक्षण के लिए देश के प्रत्येक नागरिक को विशेषरुप से युवाओं को आगे आकर अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए ।
५. वर्ष २००० से शिवलिंग निर्माण मिशन को समाजकल्याण एवं पर्यावरण शुद्धीकरण से जोडा गया है ।
६. शिवलिंग निर्माण के लिए काली मिट्टी का उपयोग किया जाता है । शिवलिंग का निर्माण होनेपर भक्त उस मिट्टी को लेकर गमला एवं तुलसी वृंदावन में डाल देते हैं । इस मिट्टी में जीवाश्म होने के कारण पौधों की शीघ्रता से वृद्धि होती है । आस्था के कारण लोग इन पौधों का विशेष खयाल रखते हैं । इस के कारण वातावरण हराभरा रहता है । काली मिट्टी के कारण जलशुद्धीकरण भी होता है ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात