हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा श्री. आदि गोदरेज के वक्तव्यों का तीव्र निषेध ।
वेदों में अनेक स्थान पर गोमांसभक्षण का केवल निषेध नहीं किया गया है, अपितु गोहत्या करनेवाले को कठोर दंड वेदों ने बताया है । व्यापारी बुद्धि से केवल लाभ-हानि का विचार करनेवाले श्री. गोदरेज को गोमाता का महत्त्व कैसे समझ में आएगा ?
मुंबई : हिन्दू धर्मिय गाय को पूज्य मानते हैं । फिर भी गोदरेज समूह के श्री. आदि गोदरेज ने गोमांस का समर्थन करते हुए अकारण अपनी अंग्रेजी बुद्धि को घिस कर ‘वैदिक कालावधि में भारतीय गोमांस खाते थे’ तथा ‘हिन्दू धर्म में बीफ को कोई विरोध नहीं है’, ऐसे वक्तव्य दिए हैं । श्री. गोदरेज ने वेद पढे बिना ही यह भाष्य किया दिखाई देता है ।
वेदों में अनेक स्थान पर गोमांसभक्षण का केवल निषेध नहीं किया गया है, अपितु गोहत्या करनेवाले को कठोर दंड वेदों ने बताया है । व्यापारी बुद्धि से केवल लाभ-हानि का विचार करनेवाले श्री. गोदरेज को गोमाता का महत्त्व कैसे समझ में आएगा ?
उन्होंने, कुछ क्षण के लिए ‘गोहत्या के विषय में वेदों में क्या कहा गया है’ ये छोडकर, अपने ही पारसी धर्मग्रंथ का पठन किया होता तो वे, ऐसे उद्गार कभी नहीं निकालते ।
पारसी धर्मगुरु ने अवेस्त के यस्न, ३८.८ की दूसरी पंक्ति में ऐसा कहा है कि, ‘गोमाता, बैल तथा बछडों का मांस भक्षण करना वर्ज्य है ।’
हिन्दू जनजागृति समिति गोदरेज के वक्तव्यों का तीव्र शब्दों में निषेध करती है, समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने एक प्रसिद्धि पत्रकद्वारा यह सूचित किया है ।
प्रसिद्धि पत्रक में आगे, हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा कहा गया है कि,
१. श्री. गोदरेजद्वारा ‘मद्यबंदी एवं गोमांसबंदी’ के कारण देश की अर्थव्यवस्था को प्रचंड रूप से हानि पहुंच रही है, ऐसा भी कहा है । गोहत्या के कारण हिन्दू संस्कृति का विनाश हो रहा है । मद्य से लाखों परिवार समाप्त हो गए हैं । श्री. गोदरेज को यह स्वीकार है; किंतु किसी भी परिस्थिति में अपने व्यवसाय पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए । उन्होंने ऐसी ‘स्वार्थी एवं समाजद्रोही’ भूमिका अपनाई । इससे अब ऐसा प्रश्न उपस्थित हो रहा है कि, समाज को एक गलत संदेश देनेवाले आदि गोदरेज, कसाई एवं किसी मद्य विक्रेता के ‘एजंट’ तो नहीं ?
२. हठयोगप्रदीपिका (३.४८) में, ‘गोशब्देनोच्यते जिव्हा तत्प्रवेशो ही तालुनि गोमांसभक्षणं तत्तु महापातकनाशनम् ॥’, ऐसा उल्लेख है, जिस में ‘गो’ शब्द का अर्थ ‘जिव्हा’ ऐसा है । ‘जिव्हा’,अपने मूंह के तालू में उलटी दुमड कर ध्यान करना अर्थात ‘गोमांसभक्षण’ ही है । इस क्रिया से महापातकों का विनाश होता है, ऐसा उसका अर्थ है; परंतु स्वार्थी धनवानों को ‘शब्दार्थ अथवा भावार्थ’ समझ कर लेने हेतु समय नहीं है । इसलिए वे वेदों का अनुचित एवं गलत अर्थ बता रहे हैं ।
३. अथर्ववेद में (१.१६.४) स्पष्ट रूप से कहा गया है कि, ‘गोहत्या करनेवालों को शिशे के गोलीसे उडा दो ।’ धर्मग्रंथों के वचनों का अर्थ समझ में आने हेतु साधना करनी पडती है, यह भी श्री. गोदरेज को ज्ञात न होना, अपने देश का बडा दुर्भाग्य है ।
४. श्री. गोदरेज, केवल मद्य-मांस विक्रय करनेवाले उद्योगपतियों की जेबें भरने हेतु ही इस प्रकार के वक्तव्य दे रहे हैं । देश के उद्योगों की चिंता करनेवाले श्री. गोदरेज ने मद्यसम्राट विजय मल्ल्याद्वारा देश को फंसा कर ९००० करोड रुपए लूटे हैं, इस विषय में मौन क्यों रखा है ?
५. हिन्दू संस्कृति में अपनी मां का विक्रय कर अथवा काट कर खाने की अनुमति नहीं है । जानबूझ कर हिन्दुओं की धर्मभावनाओं को आहत करनेवाले श्री. गोदरेज त्वरित उनका वक्तव्य पीछे लें अन्यथा गोदरेज समूह के उत्पादों का बहिष्कार कर उन्हें वैधानिक मार्ग से सबक सिखाया जाएगा ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात