आजमगढ (उत्तरप्रदेश) : कुछ समय पहले रोहित वेमुला नामक कथित दलित युवक ने आत्महत्या कर ली थी । इस मुद्दे को मीडिया ने तो भुनाया, साथ में कथित दलित हितैषी नेता भी अपनी राजनीतिक रोटी सेंकते नजर आए । परंतु वही मीडिया एवं नेता उन मुद्दों पर हमेशा की तरह बचते नजर आ रहे हैं जहाँ दलितों को हिन्दू रूप में प्रताडित किया जा रहा है ।
यह समाचार है आजमगढ में चल रहे साम्प्रदायिक तनाव का जहाँ के निजामाबाद थाना क्षेत्र के खुदादादपुर, संजरपुर, फरिया, फरीदाबाद, दाउदपुर गांव के चारों ओर बडी संख्या में पुलिसकर्मी, पीएसी जवान और गश्त करती गाडियां उपस्थित हैं ।
बता दें कि, बीते शनिवार की रात यहां दो लोगों के बीच मामूली झडप हुई और कुछ ही देर बाद इसने सांप्रदायिक हिंसा का रूप ले लिया था । पर अब निजामाबाद और सरायमीर क्षेत्र के कई गांवों के दलित लोग दहशत में हैं । लोगों का कहना है कि, प्रशासन ने उन्हें घरों से बाहर निकलने से मना कर रखा है ।
बताया जा रहा है कि, यह घटना भले शनिवार को शुरू हुई हो परंतु इसकी नींव लगभग दो महीने पहले ही पड चुकी थी और माना जा रहा है कि यह पुरी तैयारी के साथ किया गया काम है । इसी के चलते शनिवार की शाम मामूली झगडे के बाद गांव की दलित बस्ती में रहने वाले मुसाफिर के घर को आग के हवाले कर दिया गया । मुसाफिर के परिवार वालों का आरोप है कि, कुछ मुस्लिम युवकों ने उनके यहां आक्रमण किया और पूरा घर जलाकर राख कर दिया ।
केवल मुसाफिर ही नहीं, आस-पास के जितने भी दलितों के घर या छप्पर थे, सबको आग के हवाले कर दिया गया । बस्ती के लोगों का कहना है कि, घर और घर में ही बनी छोटी-मोटी दुकानों में रखे सामान तो आग में जलकर नष्ट हो ही गए, रोजी रोटी का साधन कई बकरियां तक झुलस गईं ।
तो दूसरी ओर सहिष्णु मुस्लिम बस्ती के लोगों का आरोप है कि, फरीदाबाद गांव के यादव बिरादरी के लोगों ने उनके घरों पर आक्रमण कर आग लगाई । हालांकि बस्ती में आग के कोई निशान नहीं दिखते ।
दलित बस्ती के लोग बताते हैं कि, उनके घर जब जलाए जा रहे थे उस समय पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी दोनों भी उपस्थित थे, परंतु वो स्वयं इतने डरे हुए थे कि, उनकी मदद नहीं कर पाए ।
घटना के दौरान पुलिस के एक क्षेत्राधिकारी को गोली लगी थी और कई पुलिसकर्मियों को चोटें आई थीं । निजामाबाद के तहसीलदार अभी तक अस्पताल में जीवन और मृत्यु से संघर्ष कर रहे हैं ।
प्रशासन अभी घटना के पीछे के स्पष्ट कारणों की जांच की बात कर रहा है । मगर स्थानीय लोगों और जानकारों का कहना है कि, इस हिंसा के पीछे किसी तरह की राजनीतिक मंशा से इंकार नहीं किया जा सकता ।
ये लढाई भले ही दलितों और मुसलमानों के बीच शुरू हुई परंतु बाद में इसमें यादव और मुसलमान आमने-सामने आ गए । सत्तारूढ समाजवादी पक्ष के ये दोनों अहम वोट बैंक बताए जाते हैं । ऐसे में सरकार दोनों के विरुध्द कार्रवाई करने में हिचक रही है ।
बहरहाल, पुलिस प्रशासन की तैनाती और सख़्ती के चलते इन गांवों में ऊपरी तौर पर भले ही शांति दिख रही हो परंतु जानकार कहते हैं कि, लोगों के मन में का जो ग़ुबार है, उसे देखते हुए इस शांति के लंबे समय तक कायम रहने की आशा कम ही है ।
स्तोत्र – रिव्होल्टप्रेस
Now where are the cheap chamchas like Kejrival, Rahul Gandhi, Mulayam and party, Lalu Yadav. Now why they keep quite. Where is the media who hype Kaniya and other useless people.