स्वामी विवेकानंदजी के तत्त्वज्ञान में समाजवाद ? – डॉ. श्रीपाल सबनीस की ‘अजब खोज’ !
पुणे : संत समाजवादी हो सकते हैं, इसके उदाहरण हैं स्वामी विवेकानंदजी !
उन्होंने अमरीका जाकर बुद्धवाद, झूठा हिन्दुत्व एवं वैदिक हिन्दू धर्म सभी के सामने रखा। उनकेद्वारा रखे गए विचारों में ‘समाजवाद’ दिखेगा !
अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. श्रीपाल सबनीस ने यह ‘अध्ययनशून्य’ प्रतिपादन किया। (संत समाजवादी नहीं हैं, किंतु ‘हिन्दू धर्म’ का तत्त्वज्ञान इतना व्यापक है कि, उसमें व्यापक अर्थ से ‘समानता एवं मानवता’ है। ‘हिन्दू धर्म’ अनादि अनंत है; परंतु समाजवाद का जनम तो कुछ दशक पूर्व ही हुआ है। उपर्युक्त प्रकार से हास्यास्पद वक्तव्य देकर डॉ. सबनीस अपना ही उपहास उडाने का अवसर दे रहे हैं ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
यहां के, साखळीपीर तालीम राष्ट्रीय मारुति मंदिर की ओर से आयोजित वसंत व्याख्यानमाला में ‘भारत का पूर्व भाग – कल का, आज का एवं भविष्य का’, वे इस विषय पर बोल रहे थे।
इस समय वरिष्ठ समाजवादी नेता श्री. भाई वैद्य, राष्ट्रवादी के पार्षद श्री. रवींद्र माळवदकर आदि अन्य मान्यवर उपस्थित थे।
डॉ. सबनीस ने आगे कहा …
१. हमारे देश का लोकतंत्र ‘बिकाउ’ है; क्योंकि चुनाव के समय में सर्वसामान्य लोगों को निःशुल्क मांसाहार एवं मदिरा का वितरण कर उम्मीदवार चुनकर आते हैं ! आज का लोकतंत्र आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टी से संकट में है। (सभी स्तरों पर लोकतंत्र निरर्थक एवं असफल सिद्ध होने के कारण ही ‘हिन्दू राष्ट्र’ आवश्यक है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
२. वर्तमान विश्व, इसिस एवं आतंकवाद की छाया तले होने से तीसरे परमाणु महायुद्ध की संभावना व्यक्त की जा रही है ! ऐसा होने पर हमारा देश परमाणु का उपयोग करेगा अथवा गांधी एवं बुद्ध के मार्ग पर चलेगा, यह कहना कठिन है !
३. प्रधानमंत्री मोदी विदेश जाने पर गांधी एवं बुद्ध का नाम लेते हैं; परंतु वे संघ के गोळवलकर एवं हेगडेवार का नामोल्लेख नहीं करते; क्योंकि अहिंसावाद एवं निरीश्वरवाद से ही विश्व संघटित होगा, यह मोदी को ज्ञात है ! (डॉ. सबनीस की और एक ‘अजब खोज’ एवं ‘संघद्वेष’ ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
४. भारत महासत्ता होने के लिए सभी राजनीतीक दल कितने योग्य हैं, इस विषय में संदेह है ! आज के युवाओं में बलात्कार, बुरी आदतें, अपनों के साथ-साथ किसी की भी हत्या करना ये परंपराएं बढ रही हैं। ऐसी युवा पीढी एवं दंगों में भुन रहा देश क्या कभी महासत्ता हो सकता है ? राष्ट्रपुरुषों की हत्याओं की संख्या भी बढ रही है। इसके कारण युवा पीढी एवं देश के भविष्य के विषय में प्रश्नचिह्न उपस्थित हो रहा है !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात