उज्जैन – सात समंदर पार स्पेन से आकर आर्किटेक्ट फातिमा अब ‘मां शिप्रा पुरी’ हो गई हैं। सीमेंट कांक्रीट का उपयोग किए बिना शिप्रा पुरी बांस और मिट्टी से बड़े-बड़े महल तैयार करती हैं। दीक्षा लेने के बाद अब वे गुड मार्निंग की जगह नमस्कार आैर अखाडे का अभिवादन मंत्र ‘ओम नमो नारायण’ का उच्चारण करती हैं।
केदारेश्वर घाट के समीप कामख्या धाम में वे इस समय बांस और मिट्टी से ध्यान योग केंद्र का निर्माण कर रही हैं। वह दत्त अखाड़े के संतों से घुल-मिल गई हैं।
नेपाल से की शुरुआत
मां शिप्रा पुरी ने बताया कि आर्किटेक्ट की डिग्री लेने के बाद उन्होंने सबसे पहले नेपाल में बांस और मिट्टी से पुल, पुलिया, मकान, झील का निर्माण किया। नेपाल और स्पेन की नाम-चीन होटलों में बांस के गार्डन तैयार कराए।
बांस की कुटिया बनाने आईं थीं
उन्हें २०१४ में एमपी स्टेट बंबू मिशन के तहत बुलाया गया था। सिंहस्थ में बांस की कुटिया सहित अन्य निर्माण कार्यों पर अधिकारीयों से चर्चा हुई। शिप्रा पुरी ने बताया कि, निर्माण संबंधी चर्चाएं करते-करते सिंहस्थ की चर्चाएं शुरू हो गईं। मन में जिज्ञासा बढती गई कि बिना निमंत्रण के करोड़ों लोग कैसे जमा हो जाते हैं। रामघाट पर घूमते समय दत्त अखाड़े के पुजारी आनंद पुरी महाराज से मुलाकात हो गई। बस यहीं से उनका जीवन ही बदल गया।
शिप्रा पुरी दत्त अखाड़े में ध्यान और पूजा में अधिक समय लगा रही हैं। आरती के समय झांझ भी बजाती हैं।
स्त्रोत : नर्इ दुनिया