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महाराष्ट्र : कोपरखैरणे में ‘नई मुंबई हिन्दू ब्रेन्स’ की ओर से ‘हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता’ इस विषय पर चर्चासत्र

धर्माभिमानियोंद्वारा ‘हिन्दू राष्ट्र स्थापना’ हेतु संगठित होकर सक्रिय रहने का दृढ निश्‍चय ।

चर्चासत्र में सम्मिलित हिन्दू धर्माभिमानी

कोपरखैरणे : २९ मई को प्रातः १० से दोपहर १२ बजे यहां के सेक्टर १ में भारतीय जागर पाठशाला में ‘नई मुंबई हिन्दू ब्रेन्स’ की ओर से चर्चासत्र आयोजित किया गया था ।

उस समय हिन्दू महासभा के श्री. मंगेश म्हात्रे संबोधित कर रहे थे । अपने वक्तव्य में उन्होंने यह प्रतिपादित किया कि, ‘१ सहस्र २०० वर्ष विस्थापित रहे मुसलमानों ने (यहूदियों ने) एक ‘स्वतंत्र राष्ट्र’ का सपना ‘इस्रायल’ के रूप में वास्तविकता में लाया । तो दूसरी ओर स्वतंत्रता प्राप्त हुए ६० वर्ष होने के पश्‍चात भी ‘भारत हिन्दू राष्ट्र बने’, इसलिए प्रयास करने पड रहे हैं । १ सहस्र ४०० वर्ष इस्लाम तथा २०० वर्ष ईसाईयोंद्वारा दी गई यातना सहन करने के पश्‍चात भी हिन्दू शांति से जी रहे हैं । ‘स्वभाषा, स्वधर्म तथा स्वराष्ट्र’ के संदर्भ में सदैव सतर्क रहना चाहिए ।’

इस चर्चासत्र में हिन्दू महासभा, श्री शिवप्रतिष्ठान, हिन्दुस्थान, श्री योग वेदांत सेवा समिति, बजरंग दल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, रौद्रशंभो प्रतिष्ठान, हिन्दू जनजागृति समिति तथा अन्य हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के ४७ धर्माभिमानी हिन्दू सम्मिलित हुए थे ।

‘हिन्दू राष्ट्र’ यह सपना नही अपितु वास्तव में आनेवाली एक ‘सुबह’ है । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु हर हिन्दू ने अपनी कृतिद्वारा ही प्रारंभ करना चाहिए । ‘हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता’ विषय पर विचारविमर्श के लिए संघटित हुए धर्माभिमानी हिन्दुओं ने इसके लिए संगठित होकर सक्रिय रहने का निश्‍चय किया ।

इस चर्चासत्र में, स्वातंत्र्यवीर सावरकरजी की १३३वीं जयंती भी मनाई गई । उस समय स्वातंत्र्यवीर सावरकरजी की वीरगाथा कथन करते हुए यह बताया गया कि, ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकरजी परिस थे । उन्होंने मदनलाल धींग्रा, अनंत कान्हेरे, सेनापति बापट के समान अनेक क्रांतिकारी तैयार किए । ‘हिन्दू राष्ट्र’ एक राजनीतिक अथवा सुविधा की बात नहीं है । वह एक आदर्श जीवनप्रणाली है । अपने छोटे-बडे कृत्यों को ‘आदर्श’ कर अपना ‘आचार धर्म’ आदर्श करेंगे । ‘धर्मपालन’ के कृत्य कर ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापना हेतु स्वयं में लगन की वृद्धि करेंगे ।’

उस समय उपस्थित अन्य हिन्दुत्वनिष्ठों ने भी ‘राष्ट्र एवं धर्म’ पर अपने-अपने विचार व्यक्त किए तथा इस विचारविमर्श में हिन्दुत्वनिष्ठों ने ये मांगें रखीं कि, अंग्रेजी शिक्षापद्धति में परिवर्तन कर शीघ्रातिशीघ्र ‘गुरुकुल-पद्धति’ आरंभ करें । पूरे देश में पहली कक्षा से ‘संस्कृत’ अनिवार्य करें, पाठशाला तथा महाविद्यालयों में हिन्दुओं का वास्तविक एवं ज्वलंत इतिहास पढाएं, पाठशालाओं में ‘धर्मशिक्षा’ आरंभ करें ।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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