हमें देश को उज्ज्वल बनाना है, तो पुनः हमें धर्म, प्राचीन वाङ्मय अर्थात् वेदपंरपरा की ओर जाना होगा ! – प.पू. स्वामी गोविंददेवगिरीजी
सरकार को इस संदर्भ में क्या कहना है ?
पुणे : ‘साप्ताहिक विवेक आयोजित, ‘राष्ट्रद्रष्टा : पं. दिनदयाळ उपाध्याय’ इस पुस्तक के प्रकाशन के समय प.पू. स्वामी गोविंददेवगिरीजी महाराज (पूर्वाश्रमी के आचार्य किशोरजी व्यास) मार्गदर्शन कर रहे थे। उस समय उन्होंने कहा कि, ‘हर एक राष्ट्र की अंतरंग प्राणशक्ति रहती है। राष्ट्र का चैतन्य किस कृती में है, यह ध्यान में रखते हुए प्रगति साध्य करनी होती है। अंतरंग शक्ति के बिना राष्ट्र की अधोगती होती है तथा अंतरंग शक्ति का विकास हुआ, तो ही प्रगति होती है !
भारतीय समाज की प्राणशक्ति उसका ‘धर्म’ है। भारत का धर्म जीवनमूल्यात्मक है; इसलिए हमें देश को उज्ज्वल बनाना है, तो पुनः हमें धर्म, प्राचीन वाङ्मय अर्थात वेदपंरपरा की ओर मुडना ही होगा !’ (इस में संदेह नहीं है कि, यदि संतों के मार्गदर्शन के अनुसार राजनेता राज्यकार्य करेंगे, तो भारत को निश्चित ही पुनर्वैभव प्राप्त होगा ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
यहां के गणेश क्रीडा मंच में ५ जून के दिन यह कार्यक्रम संपन्न हुआ। हिन्दुस्थान प्रकाशन संस्थाद्वारा प्रकाशित किए गए इस प्रकाशन समारोह के लिए भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शहा, केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर, हिन्दुस्थान प्रकाशन के अध्यक्ष डॉ. रमेश पतंगे आदि मान्यवर उपस्थित थे।
उस समय श्री. अमित शहा ने बताया कि, ‘पंडित दिनदयाळ के विचार केवल व्यक्तित्व प्रगति के लिए नहीं हैं, तो देश की प्रगति के लिए होने के कारण आगामी पीढी के लिए उनके विचार अत्यंत प्रेरणादायी हैं।
जवाहरलाल नेहरू भारत का ‘नवनिर्माण’ कर रहे थे; किंतु पंडित दिनदयाळजी को भारत का ‘पुनर्निर्माण’ करना था। उन्हें इस बात का पता था कि, यह केवल धर्म का पुनरुज्जीवन होने के ही कारण संभव रहता है। (सर्वसाधारण हिन्दुओं की यह अपेक्षा है कि, भाजपा ने धर्म का पुनरुज्जीवन करने का पंडित दिनदयाळजी का सपना पूरा करने के लिए साधुसंतों के मार्गदर्शनानुसार प्रयास करने चाहिए ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित कर उन्होंने बताया कि, ‘कुछ कार्यकर्ताओं ने उन्हें अच्छी कुर्सी क्यों प्राप्त नहीं हुई, इस बात का विचार करने की अपेक्षा हमें क्या साध्य करना है, इस बात का विचार करना चाहिए। कोई भी पद प्राप्त करना साध्य नहीं है, अपितु वह एक साधन है !
भारत को ‘विश्वगुरुपद’ पर विराजमान करना ही हमारा ध्येय है ! उसकी ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए !’ (यही सीख हर एक भाजपा कार्यकर्ता ने अंकित करनी चाहिए – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात