हिन्दूसंगठन और हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता !

१९ से २५ जून २०१६ तक की कालावधि में रामनाथी, गोवा में होनेवाले पंचम अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन के निमित्त से…

Hindu_Rashtra

स्वतंत्रता से पूर्व प्रस्तुत की गई हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा स्वतंत्रता के पश्‍चात कांग्रेस की धर्मनिरपेक्ष राज्यप्रणाली में खो गई । क्योंकि कांग्रेस ने एकत्रित मतों की राजनीति के लिए अल्पसंख्यकों की चापलूसी करने के साथ ही हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति को भारत से मूलतः हटाने का एक सूत्री कार्यक्रम हाथ में लिया । उस माध्यम से हिन्दू राष्ट्र शब्द का उच्चारण अर्थात राष्ट्रदोह, ऐसी हिन्दूद्वेषी परिस्थिति राजकीय एवं सामाजिक स्तर पर निर्मित की गई । ऐसा होते हुए भी सनातन संस्था ने दो-ढाई दशक पूर्व हिन्दू राष्ट्र स्थापना की घोषणा की । केवल घोषणा कर सनातन नहीं रुका अपितु देश के हिन्दुआें में धर्म और राष्ट्रप्रेम निर्माण करने के लिए उमंग के साथ कार्य प्रारंभ किया । १९ जून से २५ जून २०१६ के मध्य रामनाथी, गोवा में होनेवाला पंचम अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन उसका ही परिणाम है । देशभर के छोटे-बडे हिन्दू संगठनों और हिन्दू धर्म के संप्रदायों के प्रतिनिधि बडी संख्या में इसमें सम्मिलित होनेवाले हैं । हिन्दू राष्ट्र राजनीति नहीं; अपितु यह एक जीवनशैली है । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना से ही मानव का कल्याण साध्य होनेवाला है । इस लेख के माध्यम से भारत में हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने की अर्निवायता स्पष्ट की गयी है ।

असुरक्षित हिन्दू !

कल तक नेपाल संसार के एकमात्र हिन्दू राष्ट्र के रूप में जाना जाता था; परंतु दुर्भाग्यवश साम्यवादियों ने इस हिन्दू राष्ट्र को निगल लिया । इसलिए हिन्दुआें का स्वयं का एक भी राष्ट्र पृथ्वी पर नहीं है । भारत में हिन्दू बहुसंख्यक होते हुए भी स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्‍चात हिन्दुआें को जानबूझ कर हिन्दू राष्ट्र से वंचित रखा गया । इसके विपरीत संसार में ईसाइयों के १५७, मुसलमानों के ५२, बौद्धों के १२ तथा ज्यू पंथियों का १ राष्ट्र है; परंतु हिन्दुआें का एक भी राष्ट्र नहीं है । एक प्रकार से आज संसार में हिन्दू अनाथ हो गए हैं । भारत की राज्यव्यवस्था और समाजव्यवस्था में हिन्दू हित को प्राथमिकता नहीं है । इसलिए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि बहुसंख्यक होते हुए भी हिन्दू एक प्रकार से भारत में आश्रित जीवन का अनुभव कर रहे हैं । परिणामस्वरूप आज हिन्दुआें की अवस्था दयनीय हो गई है । हिन्दुआें की इस दुरावस्था को भारत की धर्मनिरपेक्ष शासनव्यवस्था के माध्यम से परिवर्तित नहीं किया जा सकता, यह ध्यान में रखना चाहिए । हिन्दुआें की स्थिति सुधारने तथा भारत की अंतर्बाह्य समस्याएं सुलझाने के लिए हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता क्यों है, यह देखते हैं ।

१ अ. धर्मनिरपेक्ष शासनप्रणाली में हिन्दुआें की दुरावस्था : वर्तमान में धर्मनिरपेक्ष राज्य की प्रशंसा हो रही है । भारत में गत ६८ वर्षों के लोकतंत्र में किसी भी पक्ष ने हिन्दुआें के प्रश्‍नों को सुलझाना तो दूर; अपितु उन्हे सुलझाने के लिए प्रामाणिक प्रयास भी नहीं किए । हिन्दुआें पर निरंतर धर्मांधों के आक्रमण हो रहे हैं । लव जिहाद के कारण हिन्दू युवतियों का जीवन नष्ट हो रहा है । हिन्दुआें की सुरक्षा का विचार करें तो सामान्य हिन्दुआें का कोई रक्षक नहीं है । गोमाता की उजागर रूप से हत्या हो रही है । हिन्दुआें के मंदिर शासन के नियंत्रण में हैं तथा उनका धन अल्पसंख्यकों के लिए व्यय किया जा रहा है । महंगाई तथा अकाल के कारण जनता झुलस रही है तथा किसान आत्महत्या कर रहे हैं । वर्तमान कानून, नीतियां तथा राज्यकर्ताआें में इच्छाशक्ति के अभाव के कारण धर्मनिरपेक्ष शासन में जहां जिहादी, भ्रष्टाचारी, बलात्कारी सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हों, तो ऐसा राज्य क्या कभी हिन्दूहित साध्य कर सकेगा ? अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठान, परधर्मियों के हाथ की कठपुतली बने दूरचित्र प्रणाल, कॉन्वेंट विद्यालय, धर्मनिरपेक्ष शिक्षाप्रणाली आदि के कारण हिन्दू धर्म में जन्मा हिन्दू मन तथा आचरण से परधर्मीय अथवा अधर्मी बन गया है ।

१ अ १. कश्मीरियों के पुनर्वसन का प्रश्‍न विकट : कश्मीर से विस्थापित हुए कश्मीरी पंडितो को पुनर्वसन हेतु दी गई बस्तियों में मुसलमानों को भी स्थान दिया जानेवाला है । कश्मीर के अधिकतर स्थानीय मुसलमान पाक के समर्थक हैं तथा आतंकवादियों ने उन्हीं की सहायता से हिन्दुआें को कश्मीर से विस्थापित किया था । तब भी कश्मीरी पंडितों के पुनर्वसन की बस्तियों में मुसलमानों को स्थान देना आतंकवादियों का अत्याचार सहन किए हुए कश्मीरी पंडितों के लिए अत्यंत क्लेशदायक तथा असुरक्षित है । ऐसे कश्मीर के अलगाववादियों का समर्थन करनेवाले पीडीपी पक्ष को समर्थन देकर भाजपा ने इस पक्ष को कश्मीर राज्य की सत्ता सौंपी है । इसलिए कश्मीरी पंडितों की घरवापसी की आशा और धूमिल हो गई है; इसलिए कश्मीरी हिन्दू पंडितों के कश्मीर में पुनर्वसन के लिए अब हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की आवश्यकता है ।

१ अ २. हिन्दुआें के नेता असुरक्षित : हिन्दूबहुल भारत में अभी तक धर्मांधों ने १२७ हिन्दू नेताआें की हत्या की है तथा अनेकों पर प्राणघातक आक्रमण कर उन्हें घायल किया है । हिन्दुआें के नेता ही जहां मारे जा रहे हों, वहां सामान्य हिन्दुआें की क्या स्थिति होगी, इसकी कल्पना कर सकते हैं । हत्याआें का यह सत्र आज भी चल रहा है । पूर्वांचल, दक्षिण भारत में हिन्दू नेता वहां के स्थानीय शासन के विरोध में जाकर हिन्दुआें की रक्षा का कार्य कर रहे हैं । यह स्थिति परिवर्तित करने के लिए हिन्दू राष्ट्र ही आवश्यक है ।

२. इसिस के आक्रमणों से हिन्दुआें की रक्षा करने के लिए हिन्दू राष्ट्र : वर्तमान में सीरिया के इसिस नामक अत्यंत क्रूर इस्लामी आतंकवादी संगठन ने विश्‍व स्तर पर आतंक का वातावरण निर्मित किया है । एक-एक राष्ट्र करते हुए संपूर्ण संसार में इस्लामी शासन स्थापित करने का इस संगठन का उद्देश्य है । इसलिए इस संगठन ने एक एक राष्ट्र पर आक्रमण कर उस पर विजय प्राप्त करने का सत्र प्रारंभ किया है । अब इस संगठन ने पाक और बांग्लादेश में अपने पैर जमा लिए हैं । कुछ समय पूर्व ही इस संगठन ने चेतावनी दी है कि भारत में पहले हिन्दुआें पर आक्रमण किया जाएगा । निष्पाप लोगों के गले काटनेवाले और महिलाआें पर सामूहिक बलात्कार करनेवाले आतंकवादी संगठन इसिस से हिन्दुआें की रक्षा करने के लिए तथा हिन्दुआें को इस आतंकवादी संगठन के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए उनका मानसिक और शारीरिक बल बढाने के लिए हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना आवश्यक है । वर्तमान में सत्ता पर बैठे हुए नेताआें से हिन्दुआें को अपेक्षाएं हैं; परंतु प्रत्यक्ष में हिन्दुआें को निराशा ही मिल रही है । क्योंकि इस शासन को धर्मनिरपेक्ष व्यवस्थावाला भारतीय राज्य ही चाहिए । हिन्दू राष्ट्र का विषय उनके मन में भी नहीं है ।

३. हिन्दू राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष नहीं अपितु धर्माधारित होगा ! : भारत की राज्यप्रणाली और कानूनप्रणाली अल्पसंख्यकों के लिए विशेषतः मुसलमान और ईसाइयों को छूट देनेवाली तथा हिन्दुआें के साथ सौतेला व्यवहार करनेवाली है । इसलिए हिन्दुआें को सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक आदि सभी क्षेत्रों में सदैव असुरक्षा का अनुभव होता है । स्वतंत्रता से ७ दशकों तक हिन्दुआें के साथ निरंतर किए जानेवाले अपमानास्पद व्यवहार के कारण इस देश में हिन्दू मानसिक रूप से दुर्बल हो गए हैं । उनके आस्थास्थानों पर निरंतर आघात कर उनकी धार्मिकता की एक प्रकार से हत्या की गई है तथा उसी समय अन्य धर्मियों के आस्थास्थानों का अत्यधिक आदर किया जा रहा है । इसलिए स्वाभाविक ही हिन्दुआें को छोडकर अन्य धर्मीय और पंथीय संगठित हैं; परंतु हिन्दू बिखरे हुए हैं । कांग्रेस की धर्मनिरपेक्ष राज्यप्रणाली के षड्यंत्र की हिन्दू बलि चढ गए हैं । इसलिए हमारे देश में हिन्दुआें के मन में पराएपन की भावना बढ रही है । अखिल मानवजाति का कल्याण करने की क्षमता रखनेवाले हिन्दू धर्मग्रंथ, वेद, उपनिषदों की विरासत प्राप्त यह देश धर्मनिरपेक्ष राज्यप्रणाली के कारण अधोगति की ओर जा रहा है । इसलिए देश के तथा हिन्दुआें के उत्कर्ष के लिए हिन्दू राष्ट्र की स्थापना आवश्यक हो गई है । हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा राजनीति नहीं अपितु धर्माधारित और राष्ट्रनिष्ठ जीवन यापन की एक प्रगल्भ संस्कृति और व्यवस्था होगी । मानव, पशु, पक्षी, कीडा, चींटी, वृक्ष और बेलों से लेकर सूक्ष्मातिसूक्ष्म जीवों के उद्धार का विचार करनेवाली यह एक ईश्‍वरसंकल्पित सामाजिक व्यवस्था होगी; इसके अतिरिक्त जनता सुखी होने तथा समृद्ध राष्ट्र के लिए केवल आर्थिक विकास पर्याप्त नहीं है । अपितु जीवन के सभी अंग विकसित होना आवश्यक होता है । धर्म जीवन के सभी अंगों को व्याप्त करता है इसलिए राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष नहीं अपितु धर्माधारित होना आवश्यक होता है । इसलिए हिन्दू राष्ट्र धर्माधारित ही होगा !

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