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हिन्दू संस्कृति संवर्धन हेतु अमूल्य योगदान देनेवाले प्रा. शिवकुमार ओझा ने प्राप्त किया ६२ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर !

पंचम अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन में हिन्दू राष्ट्र के ‘भारतरत्न’ का सम्मान !

प्रा. शिवकुमार ओझा का सन्मान करते हुए पू. (डॉ) चारूदत्त पिंगळे

विद्याधिराज सभागृह, रामनाथी, गोवा – यहां हो रहे पंचम अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन के दूसरे दिन हिन्दू संस्कृति संवर्धन हेतु अमूल्य योगदान देनेवाले प्रा. शिवकुमार आेझा (आयु ८३ वर्ष ) ने ६२ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करने की आनंदवार्ता सभी को दी गई । इस अवसर पर हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. डॉ. चारुदत्त पिंगळे द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा देकर प्रा. आेझा का सम्मान किया गया । भगवान श्रीकृष्ण की इस कृपा के लिए उपस्थित सभी धर्माभिमानियों द्वारा भावपूर्ण कृतज्ञता व्यक्त की गई ।

प्रसिद्धिपराङ्मुखता एवं जिज्ञासा इन गुणों से एवं ज्ञानसंपन्न प्रा. शिवकुमार आेझा !

प्रा. आेझा की आयु ८३ वर्ष है; परंतु इस आयु में भी उनका उत्साह युवकों को सोचने के लिए विवश करनेवाला है । व्यापक ज्ञान के साथ वें प्रसिद्धिपराङ्मुखता तथा जिज्ञासा इत्यादि गुणों से संपन्न हैं । हिन्दू संंस्कृति का महत्त्व सभी को समझ में आने हेतु वे आज भी विविध देशों में जाने की सिद्धता दर्शाते हैं । उन्होंने चालू हिन्दू अधिवेशन के लिए श्रीलंका एवं नेपाल देशों के धर्माभिमानियों से संपर्क किया ।

ज्ञानशक्ति द्वारा हिन्दुत्व के लिए निरपेक्षता से कार्य करनेवाले प्रा. आेझा ‘हिन्दू राष्ट्र’ के ‘भारतरत्न’ हैं – परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले

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परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवले

इतने वर्ष तक हिन्दुत्व के लिए निरपेक्षता से कार्य करनेवाले प्रा. आेझा ‘हिन्दू राष्ट्र’ के ‘भारतरत्न’ हैं । आज अपात्र व्यक्तियों को ‘भारतरत्न’ पुरस्कार दिया जाता है । प्रा.आेझा भी उनके समान ही ‘भारतरत्न’ के लिए पात्र सिद्ध हो सकते हैं । आज ऐसे ही एक ‘भारतरत्न’ का हिन्दू राष्ट्र में हम सम्मान कर रहे हैं ।

वर्तमान में समाज में विचारों का तिरस्कार हो रहा है । ‘विचारवंत’ का अर्थ है ‘ज्ञानशक्ति’ । ज्ञानशक्ति क्रियाशक्ति एवं इच्छाशक्ति को कार्यान्वित करती है । जिसप्रकार छत्रपति शिवाजी महाराज ने क्रियाशक्ति के आधार पर हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना की, परंतु उन्हें उनके गुरु समर्थ रामदासस्वामी की ज्ञानशक्ति का आधार था । विद्यारण्य स्वामी की ज्ञानशक्ति के कारण हरिहर एवं बुक्कराय इन वीर बंधुओं ने विजयनगर में हिन्दू राज्य स्थापित किया । क्रियाशक्ति के प्रतीक चंद्रगुप्त मौर्य आर्य चाणक्य की ज्ञानशक्ति से सब से प्रथम सम्राट हुए । इस उदाहरण से विचारों का महत्त्व ध्यान में आता है । आज क्रियाशक्ति द्वारा कार्य करनेवाले अनेक हैं; परंतु राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा तथा संस्कृति संवर्धन हेतु ज्ञानशक्ति के स्तर पर कार्य करनेवाले दुर्लभ हैं । ऐसे ही प्रा. शिवकुमार आेझा ज्ञानशक्ति के स्तर पर कार्य कर रहे हैं !

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