रामनाथी (गोवा) – यहां हो रहे पंचम अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन के द्वितीय दिवस के अंतिम सत्र में हिन्दू संस्कृति के संवर्धन हेतु अमूल्य योगदान देनेवाले प्रा. शिवकुमार ओझा ने उपस्थितोंको मार्गदर्शन करते हुए कहा, आज हिन्दी के साथ विविध भाषाआें का प्रसार किया जाता है; परंतु अपनी भाषा में अनेक गुण होते हुए भी प्रसारक उन गुणों को नहीं बता सकते । विद्यालयों में बच्चों को हिन्दी के गुण सिखाए जाने चाहिए । इन गुणों का ज्ञान होनेपर बच्चों में अपनी भाषा के विषय में स्वाभिमान जागृत होगा । हमारे किसी भी प्राचीन ग्रंथों में संभवतः अथवा कदाचित ऐसे शब्दों को उपयोग दिखाई नहीं देता; क्योंकि हिन्दु संस्कृति का ज्ञान निश्चयात्मक है । इस के विपरीत पश्चिमियों के ज्ञान का स्वरूप संदिग्ध है; उनके ग्रंथों में अनेक स्थानोंपर संभवतः कदाचित जैसे शब्दों का उपयोग किया हुआ दिखाई देता है । इसलिए हिन्दुआें को अपनी संस्कृति के विषय में अभिमान रखना चाहिए । हिन्दु संस्कृती जीवन का ध्येय सुनिश्चित करती है । यह संस्कृति धर्म के स्वरूप को स्पष्ट करती है । उसके समेत सृष्टि में व्याप्त प्रमुख तत्त्वों के ज्ञान को भी स्पष्ट करती है । यह संस्कृति शाश्वत तत्त्वों के आधारपर होने से वह सनातन एवं शाश्वत है । वह नष्ट नहीं होती ।