प्राचीन मंदिरों के साथ पूरे विश्व के लोगों द्वारा लूटी गई वस्तुएं वापस लाने का आवाहन !
विद्याधिराज सभागृह, रामनाथी (गोवा) – अंग्रेजों ने भारत की विविध मूल्यवान वस्तुओं को अपने देश में ले जाने हेतु वर्ष १८५० में ‘केंद्रिय पुरातत्त्व विभाग’ स्थापित किया । तत्पश्चात भारत स्वतंत्र होकर भी आज इस विभाग का कार्य अंग्रेजों द्वारा बनाए गए नियमों के आधार पर ही चल रहा है । इसलिए यह विभाग हिन्दुओं के प्राचीन धरोहर एवं वास्तुओं की ओर दुर्लक्ष कर रहा है । उडिसा में कोणार्क का सूर्यमंदिर एवं पुरी का जगन्नाथ मंदिर भी इस से प्रभावित हुआ है । हिन्दुओं की प्राचीन वास्तू तथा वस्तुओं को संजोने हेतु ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित करना आवश्यक है । उडिसा के ‘भारत रक्षा मंच’ के राष्ट्रीय महासचिव श्री. अनिल धीर ने ऐसा प्रतिपादित किया ।
श्री. अनिल धीर द्वारा कथन की गई शासकीय उदासीनता
१. आज कोणार्क का सूर्यमंदिर दिखाई देता है, वह प्रत्यक्ष मंदिर का केवल २५ प्रतिशत इतना ही है । उसे संजोने हेतु पुरातत्व विभाग कोई कार्य नहीं करता ।
२. वहां दर्शन हेतु मूल्य लगाया जाता है । इस मंदिर में हिन्दुओं को न्यूनतम सप्ताह में एक दिन निशुल्क प्रवेश मिलने हेतु हमने भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रतिभाताई पाटिल एवं उपराष्ट्रपति हमीद अन्सारी से मांग की थी; परंतु इसे दुर्लक्षित ही किया गया ।
३. राजा रणजितसिंह के सुपुत्र दिलीपसिंह से अंग्रेजों द्वारा कोहिनूर हिरा अगुवा किया गया । उसे वापस लाने हेतु शासन द्वारा प्रयत्न आरंभ होते ही कुछ राजनेताओं ने वह हिरा भेंट रूप दिया गया है, ऐसा कहकर इन प्रयत्नों को विफल किया ।
४. कोलकाता से पुरी तक ‘जगन्नाथ मार्ग’ से नारदमुनि, चैतन्य महाप्रभु तथा संत कबीर आए हैं । इसलिए इस मार्ग को संजोने हेतु हमने शासन से मांग की; परंतु इसे दुर्लक्षित किया गया । तदुपरांत हमने ही इस मार्ग से १५ दिन तक मार्गक्रमण करने पर हमें इस मार्ग पर २०० से अधिक प्राचीन वास्तू, धर्मशाला इत्यादि बातों की जानकारी प्राप्त हुई । हमने शासन को यह जानकारी प्रस्तुत कर उनका जतन करने की मांग की है ।
५. ऐसे राजनेता रहते में हमारी अनमोल प्राचीन धरोहर मिलना असंभव है । इसलिए ‘हिन्दू राष्ट्र’ ही इस पर एकमात्र उपाय है ।