विद्याधिराज सभागृह, रामनाथी – धर्मशिक्षा हमारा दर्पण है । आधुनिक शिक्षा हमें बिल्ली बनाती है । जब धर्मशिक्षा मिलती है, तब हमें हमारे बिल्ली नहीं, अपितु सिंह होने का परिचय होता है । हम सिंह समान धर्मरक्षा का कार्य करने लगते हैं । धर्मशिक्षा से यदि एक सिंह भी सिद्ध हुआ, तो पूरे जंगल में राज करने वह अकेला पर्याप्त है; इसलिए हिन्दुत्वनिष्ठ कार्यकर्ताओं को धर्मशिक्षा ग्रहण कर धर्माचरण करना आवश्यक है । धर्मशिक्षा के कारण हमारा ब्राह्मतेज बढता है एवं हमें अपने स्वस्वरूप का परिचय होने के कारण हम में क्षात्रतेज भी उत्पन्न होता है, असम के हिन्दू सेवा मंच के श्री. विश्वनाथ कुंडू ने अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र-संगठक अधिवेशन में ऐसा प्रतिपादन किया ।
धर्मशिक्षा का महत्त्व बताते हुए उन्होंने कहा कि जब प्रभु श्रीराम रावण का वध करने निकले, तब उन्होंने भी श्री दुर्गादेवी की पूजा की थी । पांडव धर्म के पक्ष में थे, तब उन्होंने भी भगवान श्रीकृष्ण से सहायता प्राप्त की ही थी । आज पांडवों के समान धर्मरक्षा का कार्य करते समय हमें ईश्वर को साथ में रख कर धर्मकार्य करना चाहिए ।
धर्मशिक्षा के कारण स्थानीय युवकों में हुए परिवर्तन !
वर्तमान में हमने धर्मशिक्षावर्ग चालू किए हैं । इस धर्मशिक्षावर्ग से नि:स्वार्थ एवं धर्म हेतु समर्पित होकर कार्य करनेवाले कार्यकर्ता मिले । इन कार्यकर्ताओं को पृथक-पृथक राजनीतिक नेताओं द्वारा लालच दर्शाया गया, तब भी केवल साधना के बल से वे इस लालच पर बलि नहीं चढे । कुछ युवक व्यसनाधीन थे । नामजप आरंभ करने पर उनका व्यसन धीरे-धीरे न्यून हुआ एवं तदुपरांत पूरी तरह बंद होगया । आज जहां मेरा जाना असंभव होता है, वहां जाकर वे नामजप का महत्त्व बतानेवाले नामजप सत्र आयोजित कर रहे हैं । यह केवल ईश्वर की कृपा से हुआ ।