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यदि सनातन के विरोध में प्रविष्ट किए गए परिवादों में सरकार हस्तक्षेप करेगा, तो वह न्यायालय का अनादर ही होगा – अभिनेता श्री. शरद पोंक्षे

‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघद्वारा सनातन पर बंदी की मांग एवं सरकार पर दबाव’ इस समाचार पर, अभिनेता श्री. शरद पोंक्षेद्वारा व्यक्त किये गये, विचार . . .

Sharad-Ponksheराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघद्वारा सनातन पर बंदी की मांग की गई; केवल मांग नहीं की गई, तो वह बंदी लगाने के लिए सरकार पर दबाव भी डाल रहा है, यह पढकर स्वातंत्र्य वीर सावरकर के बोल स्मरण में आये, वे कहते थे कि, ‘मुझे मुसलमान, ईसाईयों का भय नहीं है। मुझे हिन्दुओं का भय है !’

स्वा. सावरकरजी ने उन्हें कब का ही पहचाना था।

भारत जनतंत्र राष्ट्र है या हुकूमशाही राष्ट्र है, यह बात पहले स्पष्ट करनी चाहिए, यदि यहां जनतंत्र है, तो उसमें न्यायालयों को विशेष महत्त्व है। एक बार कोई बात न्यायालय में न्यायप्रविष्ट की गई, तो उसमें अन्य कोई भी संगठन यदि सरकार पर दबाव डालती है, तो सरकार ने उन्हें उचित प्रकार से समझ देनी चाहिए; किंतु यदि सरकार समझाने की अपेक्षा उन संगठनों के ही दबाव में आएगी, तो उन्हें सरकार में बैठने का नैतिक अधिकार नहीं होना चाहिये !

अनेक वर्षों से सनातन पर बंदी की मांग की जा रही है। उससे अब तक कुछ भी सिद्ध नहीं हुआ है। न्यायालय, न्यायाधीश सक्षम हैं, वे उचित निर्णय करेंगे। मेरा यह मत है कि, यदि सरकार इस में हस्तक्षेप करनेवाली है, तो यह न्यायालय का अनादर ही है !

मैं किसी भी संगठन के पक्ष में नहीं हूं; किंतु न्याय सभी के लिए समान क्यों नहीं है ?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कभी मुसलमान संगठन, जिन्हें २ वर्ष पूर्व मुंबई में वीर स्मारक में जो कुछ गडबडी हुई थी, तो यह कभी नही सुना था कि, उस संदर्भ में सरकार पर इतना दबाव डाला है ! अतः सरकार को न्यायालयीन प्रक्रिया के बीच में नहीं आना चाहिए। किसी भी संगठन के कहने पर सनातन पर बंदी डालने का प्रयास करना, यह जनतंत्र का गला घोटने के समान है !

मुझे यह आशा है कि, सरकार उचित विचार करेगी तथा उचित कदम ऊठाएगी। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो सनातन को न्यायालयीन लढा देना बाध्य होगा तथा मुझे यह विश्वास है कि, अंतिम विजय सत्य का ही होगा !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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