गुरुपूर्णिमा के अवसर पर (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवलेजी का संदेश
हिन्दू धर्म की गुरु-शिष्य परंपरा देश की संतपरंपरा द्वारा दी हुई अमूल्य देन है । संत तो साक्षात् ईश्वर के सगुण रूप होते हैं । संतों के कारण ही समाज साधना की ओर झुकता है, साथ ही समाज में सत्वगुण भी बढते हैं । इसलिए गुरुपूर्णिमा के दिन सद्गुरु सहित आध्यात्मिक मार्गदर्शन करनेवाले संतों के प्रति भी कृतज्ञता व्यक्त की जाती है ।
धर्म विरुद्ध अधर्म की लडाई प्रत्येक युग में लडी जाती है । आज आए दिन देश में सर्वत्र उसका दृश्य दिखाई दे रहा है । जहां धर्म होता है, वहां जय होती है, यह गीता का वचन होने से आगामी काल में प्रत्येक व्यक्ति को धर्म के पक्ष में खडा रहना तथा उसके लिए कार्य करना आवश्यक होनेवाला है । सामान्य हिन्दुआें को, धर्म का पक्ष कौन सा है, यह समझ में नहीं आता । ऐसे लोगों को वास्तविक संतों से मार्गदर्शन लेना तथा उसके अनुरूप कृत्य करना अपेक्षित है ।
वर्तमान काल में भारत के एवं हिन्दुआें के सभी संकटों पर उपाय के रूप में प्रत्येक व्यक्ति को हिन्दू राष्ट्रस्थापना का कार्य करना, यह गुरुतत्त्व को अपेक्षित साधना है । आगामी काल की दृष्टि से भी हिन्दू राष्ट्र स्थापना का कार्य करने का अर्थ धर्म विरुद्ध अधर्म इस लडाई में धर्म के पक्ष में कार्य करने जैसा है । संतों के मार्गदर्शन में यह कार्य करने से इस कार्य को आध्यात्मिक अधिष्ठान एवं दिशा प्राप्त होती है । एकसंध भारत के पहले सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने आचार्य चाणक्यजी के मार्गदर्शन में, विजयनगर के हिन्दू साम्राज्य के निर्माता हरिहरराय एवं बुक्कराय ने शृंगेरीपीठ के शंकराचार्यजी विद्यारण्यस्वामी जी के मार्गदर्शन में तथा हिन्दवी स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराजजी ने समर्थ रामदास स्वामीजी के मार्गदर्शन में हिन्दू राष्ट्रनिर्माण का कार्य किया था । यह इतिहास है; इसीलिए इस गुरुपूर्णिमा से संतों के मार्गदर्शन में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का कार्य आरंभ कीजिए एवं धर्म विरुद्ध अधर्म की इस लडाई में धर्म के पक्ष में खडे हो जाइए !
- (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले, प्रेरणास्रोत, हिन्दू जनजागृति समिति