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२४ जुलार्इ को ‘कश्मिरी हिन्दुआें’की वापसी हेतु कर्नुल (आंध प्रदेश) में जनसभा

एक भारत अभियान : कश्मीर की आेर …

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१९९० में कश्मिरी हिन्दू जिहादी आतंकवाद के पहले शिकार बने । जिहादी आतंवादियों ने हत्या, बलात्कार, धमकियां इन जैसे माध्यमों का उपयोग कर ४.५ लक्ष से अधिक कश्मिरी हिन्दुआें को कश्मीर से पलायत करनेपर विवश कर दिया । पिछले २६ सालों से कश्मिरी हिन्दू अपने ही देश में विस्थापितों का दुर्भाग्यपूर्ण जीवन व्यतित कर रहे है । तुष्टीकरण की राजनीति के कारण किसी भी राजनीतिक पार्टी ने कश्मिरी हिन्दुआें की आेर ध्यान नहीं दिया । आज भी कश्मिरी हिन्दू कश्मीर में वापस नहीं जा सके, परंतु कश्मीर में प्रारंभ हुआ जिहादी आतंकवाद आज भारत के कर्इ अन्य राज्यों में पहुंच गया है । इस कारण कुछ क्षेत्रों से हिन्दू भी विस्थापित होने लगे है । अब यह स्थिती बदलने हेतु एक ही उपाय है, वह है संपूर्ण देश में हिन्दुआें ने कश्मिरी हिन्दुआेंका समर्थन में खडे होना चाहिए । कश्मिरी हिन्दुआेंकी पुनर्वसन हेतु कश्मीर घाटी में ही ‘पनून कश्मीर’ (अपना कश्मीर) इस स्वायत्त भाग के निर्माण हेतु निश्चय करे । इस हेतु से आयोजित जनसभा में भाग ले ।

विस्थापित कश्मिरी हिन्दुआेंकी मांगे

१. कश्मिरी हिन्दुआेंका पुनर्वसन नैसर्गिक आपदा के कारण नहीं, जिहादी आतंकवाद के कारण हुआ है । इसलिए केवल अर्थसाहाय्य नहीं, तो ‘पनून कश्मीर’ (एैसा स्वायत्त क्षेत्र जहां धारा ३७० लागू नहीं होगी) मिलना चाहिए । हिन्दू मंदिरों की भूमि वापस मिलनी चाहिए ।

२. कश्मिरी हिन्दुआेंका ‘देश के अंतर्गत विस्थापित’ यह दर्जा मिलना चाहिए । १९९० में हुआ जिहादी आतंवादियों का आक्रमण हिन्दूआें के वंशविच्छेद हेतु ही था, यह सत्य मान्य करना चाहिए ।

३. जम्मू-कश्मीर का राज्यशासन कश्मिरी हिन्दुआेंका पुनर्वसन धर्मांध जिहादीयों की बस्तीयों में करना चाहता है । जो जिहादी धर्मांध आतंकवादियों के जनाजे में सम्मिलित होते है, ‘इसिस’ के झंडे लहराते है तथा पुलिस पर आक्रमण करते है, क्या वे कश्मिरी हिन्दुआें को जिवित रखेंगे ?

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