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यदि भारत न उठाता यह कदम तो १९५० में ही मिल जाती UNSC की स्‍थायी सीट

unscनई दिल्ली : संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के मुद्दे को फिलहाल टाल देने से भारत को बडे देशों ने फिर झटका दिया है। इससे पहले न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप (एनएसजी) के मुद्दे पर भारत को हार का सामना करना पडा था। इन दोनों ही मुद्दों पर भारत का विरोध करने वाला और कोई नहीं बल्कि चीन है। चीन लगभग हर मुद्दे पर भारत का विरोध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहले भी करता रहा है। लेकिन यहां यह बताना बेहद दिलचस्प होगा कि कभी चीन भारत की ही बदौलत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य बना था।

दरअसल १९५० में ही भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने का ऑफर मिला था। लेकिन उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस ऑफर को ठुकरा दिया और भारत की जगह चीन को इसका अस्थाई सदस्य बनाने का प्रस्ताव कर दिया। इसके बाद ही चीन को संयुक्त राष्ट्र की स्थायी सीट मिल सकी थी। इतिहास में यह तथ्य कभी खुलकर सामने नहीं आ सका। इसको लेकर तत्कालीन सरकार ने कुछ और ही बयान सदन में पेश किया था।

हालांकि इस तथ्य को राजनीतिक स्तर पर झुठलाया जाता रहा है। वहीं कुछ मीडिया की खबरों में इसको सही या गलत बताया जाता रहा है। इसके बावजूद कुछ राजनीति के धुरंधर इसका प्रमाण भी देते हैं। इनमें से एक प्रमाण नेहरू म्यूजियम में मौजूद विजयलक्ष्मी पंडित की फाइल नंबर ५९ और ६० है। इसमें जवाहर लाल नेहरु के १९४५-५० में संयुक्त राष्ट्र को लिखे खतों को शामिल किया गया, जिसमें इस ऑफर का जिक्र किया गया है।

बहरहाल, १९५० के बाद कई मौकों पर भारत इसके लिए प्रयास करता रहा है। लेकिन हर बार उसको इस मुद्दे पर हार ही मिली है। भारत काफी समय से संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की बात खुले मंच पर करता रहा है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह बात संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में कही थी कि यदि इसमें सुधार नहीं किए गए तो संयुक्त राष्ट्र महत्वहीन हो जाएगा और इसका वजूद खतरे में पड जाएगा।

दिलचस्प बात यह है कि भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के दावेदारों में दुनिया में अकेला देश नहीं है। बल्कि इस दौड में में जापान, जर्मनी और ब्राजील भी शामिल हैं।

स्रोत : जागरण

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