नई देहली में युरोप : एक भारतीय दृष्टिपर दो दिवसीय कार्यशाला का प्रारंभ
नई देहली : स्वतंत्रता के उपरांत मिडिया और अॅकडमीद्वारा भारत के इतिहास की गलत छबि और आवाज भारतियों के मन-मष्तिष्क पर डाली जा रही है । इसको छेद देने के लिए हमें युरोप का भारतीय दृष्टीसे अभ्यास करने की आवश्यकता है । इस अभ्यास से भारत एक विकसनशील देश या साप-मदारी से खेलनेवाला देश है, ऐसे स्वयं के विषय के भारतियों के भ्रम दूर हो जाऐंगे, ऐसा प्रतिपादन भोपाल के धर्मपाल शोधपीठ के निदेशक प्राध्यापक कुसुमलता केडियाजी ने आज किया । वे दो दिवसीय युरोप-एक भारतीय दृष्टी, इस विषयपर आधारित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे । इस कार्यशाला का आयोजन धर्मपाल शोधपीठ, भोपाल एवं सभ्यता अध्ययन केंद्रद्वारा किया गया । यहां के भाई वीरसिंग मार्गस्थित सेवाभारती के कार्यालय में हुए इस कार्यशाला का ४० से अधिक लोगों ने लाभ लिया । इस समय व्यासपीठपर बनारस के गांधी विद्या संस्थान के प्रा. रामेश्वरप्रसाद मिश्र, हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक पू. डॉ. चारूदत्तजी पिंगळे उपस्थित थे । कार्यक्रमका संचालन भारतीय धरोहर इस पत्रिका के कार्यकारी संपादक श्री. रवि शंकरजी ने किया ।
अपने उद्बोधन में प्राध्यापक कुसुमलता केडियाजी ने कहा की, वास्तव में पूर्वकाल से ही हम हर शास्त्र में अत्यंत प्रगत थे । ५००० वर्ष पूर्व से हम सात मोक्षपुरीयों का वर्णन सुनते है । इससे उसकाल में भी हमारे यहां नगर की योजना कैसे थी, यह ध्यान में आता है । रामायणकाल में एक साधारण धोबी का माता सीता के विषय का आक्षेप राजा श्रीराम को पता चलता है, इससे हमारे गुप्तचर विभाग की सचेतता; जब अन्य देशों में पुलिस नाम की कोई चीज नहीं थी, तब हमारे यहां १८ अक्षोहणी सेना का महाभारत में आया संदर्भ हमारी युद्धसज्जता; राजस्थान जैसे रेगिस्तान में हमने उंचाईपर बनाए दुर्ग, यह हमारी स्थापत्यकला ध्यान में आती है । हमारे यहां लखबंजारे के पास १ लाखतक बैलगाडीयां रहती थी । इस बेलगाडीयां की यातायात के कारण हमारे यहां सडके थी । इन सडकोंपर अस्पताल एवं ठहरने की व्यवस्था थी । उत्तरापथ, दक्षिणापथ नाम से कहीं जगह हमारे रास्तों का उल्लेख आता है । व्यापार का देखा जाए, तो हमारा पुरा सागरतट बंदरगाह से भरा हुआ था । इसीप्रकार साहित्य, चित्रकला आदी शास्त्रों में भी हम पारंगत थे । अब आज इस स्वाभिमान को देश के १ लक्ष से भी अधिक युवाआेंतक हमें पोहोचाने की आवश्यकता है । वास्तविक रूप से यह असत्य के विरोध में सत्य का युद्ध है । जिसके लिए हमे तयार होना होगा ।
असत्य इतिहास के कारण गुमराह हो रहे युवाआें को सत्य की जानकारी शस्त्र के समान !
इस समय मार्गदर्शन करते हुए पू. डॉ. पिंगळेजी ने कहां की, आज असत्य इतिहास के कारण भारत के युवा गुमराह हो रहे है । इस असत्य इतिहास पर सत्य इतिहासद्वारा ही विजय प्राप्त हो सकती है । आज सत्य इतिहास की जो बहुमूल्य जानकारी हमे प्रा. केडियाजी द्वारा मिली, वो हम सभी के लिए एक ज्ञानशस्त्र है । यह शस्त्र प्रथम हमारे धर्मबंधूआें का अज्ञान दूर करेगा । आगे यही धर्मबंधू और लोगों का अज्ञान दूर करेंगे । आज इस उदबोधन द्वारा हमें मिले एकेक शब्द में शक्ती है । सप्तसमुद्र वलयांकित राज्य का वर्णन रामायण में है । इसी रामराज्य के लिए हमें प्रयास करने होंगे । इन प्रयासो में ज्ञानशक्ती का महत्त्वपूर्ण कार्य है ।
क्षणिकाएं
१. इस कार्यशाला को अधिकतर युवाआेंकी उपस्थिती थी । प्रा. केडियाजी के उदबोधन से मंत्रमुग्ध होकर पूरे दिन उन्हे सत्र में सहभाग लिया । तथा उदबोधन से प्रेरित होकर युवाआेंने यह जानकारी अधिकाधिक लोगोंतक पहुचाने के आश्वासन दिया ।
२. कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में महर्षि दयानंद गोसंवर्धन केंद्र के संचालक श्री. सुबोधकुमार जी भी उपस्थित थे ।
३. कार्यक्रम से पूर्व प्रा. रामेश्वर मिश्रजी ने पू. डॉ. चारूदत्त पिंगळेजी को व्यासपीठपर आमंत्रित किया । पू. डॉ. पिंगळेजी का परिचय देते हुए उन्होंने कहां, सदाचारी, श्रेष्ठ, चैतन्य और साधना से ओतप्रोत साधकों का निर्माण करनेवाली संस्था है सनातन संस्था ! इस संस्था के संस्थापक पू. डॉ. जयंत आठवलेजी है । और पू. पिंगलेजी इस संस्था के मार्गदर्शक, एक आध्यात्मिक विभूति, संत और प्रखर देशभक्त है । इस संस्था का उदघोष है, जयतु जयतु हिन्दुराष्ट्रम् । इस उदघोष से ही संस्था का कार्य ध्यान में आता है । आज देश में बाबा रामदेवजी के साथ सनातन संस्था एक बडी संस्था है की, जो देश में परिवर्तन कर सकती है । संस्था की यह विशेषता है की, वो राजनैतिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक इन तिन्हो क्षेत्र में अग्रेसर है ।