नोएडा : भारत के इतिहास और संस्कृति के सबसे प्राचीनतम निर्माणों में से माने जाने वाले श्रीराम सेतु पर अब एक बार पुनः शोध होने जा रहा है, भगवान श्रीराम जब लंका पर चढ़ाई कर रहे थे तब उन्होंने वानर सेना की मदद से समुद्र के ऊपर पत्थरोंकी सहायता से सेतु बनवाया था जो पानी के ऊपर तैरा करता था।
श्रीराम सेतु का निर्माण भारतीय इतिहास के महान इंजीनियरों में से एक भगवान विश्वकर्मा के पुत्र नल और नील ने किया था, जो कि भगवान विश्वकर्मा के समान ही इस कला में निपुण थे।
इसके साथ ही नल और नील को यह विद्या भी भली भांति ज्ञात थी जिससे पत्थर पानी में डूबता नहीं था।
भारत और श्रीलंका की सीमा पर स्थित यह पुल किस तकनीक से बनाया गया था इसका रहस्य आज तक कोई भी वैज्ञानिक नहीं समझ सका है। ना ही मात्र श्रीराम सेतु अपितु इसी तरह के भारत में कई रहस्य हैं जहां तक आज का विज्ञान नहीं पहुंच पाया है।
ऐसी ही अलग-अलग प्राचीन इंजीनियरिंग तकनीक को जानने के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) के छात्र अब उस काल के संस्कृत ग्रंथों का अध्ययन करेंगे।
प्राचीन इंजीनियरिंग को समझने के लिए आईआईटी खडगपुर अपने यहां ‘सेंटर ऑफ साइंस एंड हेरिटेज’ की शुरुआत करने की प्रक्रिया में है।
यहां पर इंजीनियरिंग के छात्र संस्कृत साहित्य में विज्ञान और टेक्नोलॉजी का अध्ययन करेंगे। वहीं आईआईटी भुवनेश्वर भी डिग्री कोर्सों से हटकर एक संस्कृत भाषा का कोर्स शुरू करने की योजना बना रहा है।
इसके अलावा आईआईटी रूड़की भी संस्कृत ग्रंथों में विज्ञान और इंजीनियरिंग पढाने की योजना बना रही है। यहां तक कि आईआईटी रूडकी ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय से यूजी और पीजी कोर्स चलाने की मांग की है।
आईआईटी में संस्कृत पढ़ाने की वकालत करते हुए एक आईआईटी डायरेक्टर का कहना है कि, इंजीनियरिंग चमत्कार की तकनीक सैकड़ों साल पहले केवल संस्कृत ग्रंथों में ही हुआ करती थी, श्रीराम सेतु और अशोक स्तंभ अपने आप में खुद एक उदाहरण है।
ज्ञात हो कि, देश में एेसे कर्इ निर्माण हैं जो आधुनिक इंजीनियरिंग को मात देते हैं। जिसे आज का विज्ञान समझने में नाकाम है।
माना जा रहा है आर्इआर्इटी के इस कदम से संस्कृत भाषा काे भी काफी बढ़ावा मिलेेगा। संभव है कि, आर्इआर्इटी के इस कदम से बाकी संस्थान भी संस्कृत की कद्र को समझते हुए इसे बढाना देने के लिए आगे आएंगे।
स्त्रोत : रिव्होल्टप्रेस हिन्दी