मंदिर सरकारीकरण के दुष्परिणाम !
अभी तक के उदाहरणों से यही सिद्ध हुआ है कि, यदि मंदिर सरकार के नियंत्रण में गए, तो निश्चित रूप से उन में भ्रष्टाचार होता ही है ! घोटालेबाजों पर कठोर कार्रवाई होने एवं सरकार नियंत्रित मंदिर भक्तों के नियंत्रण में आने हेतु ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित करना अपरिहार्य है !
लोकप्रतिनिधि एवं प्रशासकीय अधिकारियोंद्वारा, ब्यौरा बदलने पर विवश किया गया !
श्री क्षेत्र तुलजापुर : मंदिर संस्थानद्वारा महाराष्ट्र की कुलस्वामिनी श्री तुलजाभवानी माता के चरणों में भक्तोंद्वारा श्रद्धा के साथ अर्पित मूल्यवान वस्तुएं एवं नगद राशि का अपहार किया गया है। इस में ३९ किलो सोना एवं ६०८ किलो चांदी की लूट की गई है तथा राज्य अपराध अन्वेषण विभागद्वारा अपने ब्यौरे में ४२ लोगों के विरोध में फौजदारी अपराध प्रविष्ट करने की सिफारिश करने की बात भी उजागर हुई है !
इस के अनुसार अन्वेषण विभागद्वारा संबंधित अधिकारियों पर फौजदारी अपराध प्रविष्ट किए गए हैं। इस में ११ जिलाधिकारी एवं ८ नगराध्यक्ष दोषी पाए गए है। इसी के साथ ऐसा स्पष्ट हुआ है कि, अन्वेषण विभाग के जांच ब्यौरे में लोकप्रतिनिधि एवं प्रशासकीय अधिकारियों ने दबाव डाल कर परिवर्तन करने पर विवश किया। (इस से यही स्पष्ट होता है कि, अन्वेषण यंत्रणाएं भी इन लोकप्रतिनिधि एवं प्रशासकीय अधिकारियों के हाथ की कठपुतलियां बन गई है। अन्वेषण यंत्रणाओंद्वारा बिना पक्षपात के अन्वेषण होने हेतु राज्यशासन क्या प्रयास करेगा ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
अपराध अन्वेषण विभाग का ब्यौरा
१. वर्ष १९९१ से २०१० इन २० वर्ष की कालावधि में मंदिर संस्थान एवं ठेकेदारों की मिलीभगत से श्री तुलजाभवानी मंदिर के सिंहासन दानपेटी में हुई गड़बड़ी उजागर हो गई है। इस कालावधि में राज्य अपराध अन्वेषण विभागद्वारा अपहार की जांच चल रही थी।
२. मंदिर संस्थान का कामकाज अभी तक निजाम के कार्यकाल में प्रचलित ‘मंदिर-ए-कवायत’ के अनुसार चल रहा है एवं उस में अब तक परिवर्तन नहीं किया गया है ! (देश स्वतंत्र होकर ६९ वर्ष बीत गए, फिर भी निजाम सरकार की कार्यपद्धति में अब तक परिवर्तन क्यों नहीं किया गया ? यदि जनता को ऐसा प्रतीत हो कि, इसके लिए अब तक की सरकारें ही उत्तरदायी है, तो उस में क्या गलत है ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) तब से अब तक धाराशिव के जिलाधिकारी, मंदिर संस्थान के पदसिद्ध अध्यक्ष एवं तुलजापुर के विधायक, नगराध्यक्ष, उपविभागीय अधिकारी एवं तहसीलदार सभी सदस्य हैं।
३. मंदिर में सैकडों करोड रुपयों का अपहार करनेवालों में ९ उपविभागीय अधिकारी, ९ तहसीलदार, १० ठेकेदार तथा मंदिर का कामकाज देखनेवाले १४ कर्मचारियों का समावेश है।
४. इस अहवाल में कहा गया है कि, इस अपहार में १० ठेकेदारों ने पिछले २० वर्ष में मंदिर के करोडो रुपयों के मूल्यवान गहनों की लूट की है। अतः उन पर दखलपात्र फौजदारी अपराध प्रविष्ट करना चाहिए।
एक विधायक एवं ११ प्रशासकीय अधिकारी दोषी
इस ब्यौरे में कहा गया है कि, मंदिर के अपहार प्रकरण में मंदिर संस्थान के न्यासी रहनेवाले एक विधायक एवं प्रशासकीय अधिकारी अनिल पवार, संजयकुमार, राजेशकुमार, मधुकर कोकाटे, सुरेंद्रकुमार बागडे, संजय अग्रवाल, एस. चोक्किलगम, आशिष शर्मा तथा एम.बी. देवणीकर इन सबका समावेश है। इन्ही लोगों के दबाव के कारण अभी तक जांच ब्यौरे में ३ बार परिवर्तन किया गया है। उन पर राज्य सरकार को ही उचित कार्रवाई करनी चाहिए !
सैकडों करोड रुपयों का अपहार ?
राज्य अपराध अन्वेषण विभाग को मंदिर संस्थानद्वारा किसी भी प्रकार का सहयोग नहीं किया गया। संस्थान के अधिकारियों ने जानकारी को दबा कर रखा, जिसके कारण विभाग को वर्ष २०१० से उतरते क्रम से प्रतिवर्ष १५ प्रतिशत का घाटा मान कर दानपेटी का सोना, चांदी तथा नगद राशि का अंदाजा लगाना पडा ! इस के अनुसार मंदिर से पिछले २० वर्ष में ३९ किलो सोने तथा ६०८ किलो चांदी की लूट हुई है। उस-उस कालावधि में सोने-चांदी के मूल्य मान कर चलने से विभाग के ब्यौरे में केवल ७ करोड १९ लक्ष रुपयों के अपहार की ही प्रविष्टि की गई है। प्रत्यक्ष में मंदिर से २०० किलो से अधिक सोना लापता होने का अंदाजा है। (संदर्भ : एबीपी माझा वृत्तवाहिनी, २३.८.२०१६)
विविध देवस्थानों के घोटालों के विरोध में हिन्दू जनजागृति समिति एवं हिन्दू विधिज्ञ परिषदद्वारा की गई लडाई के कारण ही सफलता !
हिन्दू जनजागृति समिति एवं हिन्दू विधिज्ञ परिषदद्वारा वर्ष २०१३ से विविध मंदिरों के भ्रष्टाचार उजागर किए जा रहें हैं !
- पंढरपुर के विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर के घोटाला प्रकरण में मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट कर वर्ष २०१४ में ३५० एकड से अधिक भूमि देवस्थान को पुनः प्राप्त करवा दी।
- वर्ष २०१५ में ३ सहस्र ६७ मंदिरों का कामकाज संभालनेवाली पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समितिद्वारा अनेक घोटाले बाहर निकाले गए। उसका अन्वेषण शासन ने राज्य अपराध अन्वेषण यंत्रणा को (सीआयडी) सौंपा है।
- मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर में भक्तोंद्वारा अर्पित धन किस पद्धति से अन्य धर्मियों को बांटा जाता है, यह भी उजागर किया है।
इसी पद्धति से शासन नियंत्रित तुलजापुर देवस्थान के घोटालों के विरोध में लडाई चल रही है। इस प्रकरण में पिछले वर्ष मुंबई उच्च न्यायालय के संभाजीनगर खंडपीठ में एक जनहित याचिका प्रविष्ट की गई है। इस प्रकरण में उच्च न्यायालयद्वारा अन्वेषण यंत्रणा को कठोर शब्दों में फटकारते हुए आदेश दिए गए एवं कहा गया कि, अन्वेषण यंत्रणा का कार्य समाधानकारक नहीं है। इस संदर्भ में आगे क्या कार्रवाई करेंगे, इस का ब्यौरा ८ सप्ताह में गृह, महसूल एवं न्याय विभाग के सचिव तथा धाराशिव के जिलाधिकारी को प्रस्तुत करना चाहिए।
इस प्रकरण में हिन्दू जनजागृति समिति के नेत़ृत्व में ‘श्री तुलजाभवानी संरक्षक कृति समिति’ स्थापित की गई है। हाल-ही में इस समितिद्वारा पत्रकार परिषद आयोजित कर न्यायालय के आदेश की प्रतिक्षा न करते हुए राज्यशासन को स्वयं कार्रवाई कर नागरिकों एवं भक्तों के समक्ष देवस्थान के धन की लूट करनेवालों को उजागर कर उन्हें कठोर दंड देने की मांग भी की गई थी।
अतः इन सभी घटनाओं के फलस्वरुप पिछले ६ वर्ष से कोई कार्रवाई न करनेवाले राज्य अपराध अन्वेषण विभाग को आगे की कार्रवाई करने पर विवश किया गया !
मंदिर घोटाले की बडी व्याप्ति
एबीपी माझा के समाचार के अनुसार ३९ किलो सोना एवं ६०८ किलो चांदी की लूट की गई, ऐसा उल्लेख है। प्रत्यक्ष में इस संदर्भ में राज्य अपराध अन्वेषण शाखाद्वारा किए गए जांच में १२० किलो सोना तथा २४० करोड रुपयों की लूट होने की बात सामने आई थी। इसी के साथ तत्कालीन जिलाधिकारी डॉ. प्रवीण गेडामद्वारा की गई जांच में स्पष्ट हुआ था कि, २६५ एकड भूमि में अवैधानिक रूप से फेरबदल कर उसे २० जुलाई २००८ को ७७ लोगों के नामपर किया गया।
इसलिए प्रत्यक्ष में इस घोटाले की व्याप्ति एक ‘हिमनग’ की तरह है; ऊपर से दिखती है छोटी, अंदर से प्रचंड बडी है !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात