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तानाजी मालसुरे का उपनाम सिंह था – आईसीएस्ई पाठ्यक्रम मंडल की नर्ई खोज !

बच्चों को विकृत इतिहास पढाकर उनसे सत्य छिपानेवाला आईसीएस्ई मंडल भंग किजिए !

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मुंबई –
काऊन्सिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एक्जामिनेशन (आईसीएस्ई) मंडल के होम स्कूल की पुस्तकमें तानाजी मालुसरे का उपनाम सिंह था । उनके सम्मान में दुर्ग को सिंहगड नाम दिया गया, यह खोज की गई है । (यह नई खोज लगानेवाले मंडल को अब पुरस्कार दिया जाना चाहिए ! ऐतिहासिक संदर्भ ना देकर इतिहास की मनगढंत तोडफोड करनेवाले इस मंडल के प्रबंधक मंडलपर शासन कार्यवाही करे ! – संपादक)

आईसीएस्ई मंडल की ओर से विगत कुछ वर्षों में देशभर में होम स्कूल प्रकरण चल रहा है । इसके द्वारा विद्यार्थियों को नवीं कक्षातक घरपर ही अध्ययन कर दसवी की बोर्ड की परीक्षा देने की सुविधा होती है । इन विद्यार्थियों के लिए परीक्षा मंडल की ओर से कुछ पुस्तकों की सिफारीश की जाती है । इसके अनुसार सिफारीश किए गए न्यू सरस्वती हाऊस इंडिया प्रा. लि. इस प्रकाशक द्वारा छठी कक्षा के मराठी विषय के लिए प्रकाशित इस पुस्तक में यह नया इतिहास लिखा गया है । इस पुस्तक का नाम सप्तरंग है । इस पुस्तक के पृष्ठ क्र. ५८ पर ११ वें पाठ में पुणे-एक ऐतिहासिक शहर अंतर्गत यह जानकारी दी गई है ।

1389793566_web%20_tanaji1अन्य चूकें

१. शिवकालीन कोंढाणा दुर्ग का उल्लेख भी आईसीएस्ई के होम स्कूल के लिए सिफारिश की गई पुस्तक में अयोग्य दिया गया है । इस दुर्ग का उल्लेख कोंडाणा किया गया है ।

२. इस पुस्तक के शब्दार्थ में ancient अर्थात प्राचीन इस शब्द का अर्थ ऐतिहासिक ऐसा अयोग्यरूप से किया गया है ।

३. इन जैसी अनेक चूकें इस पुस्तक में हैं, ऐसा अभिभावकों द्वारा बताया गया । परीक्षा मंडल इसका संज्ञान ले, यह मांग अभिभावक कर रहे हैं । इस पुस्तक में निम्न प्रकार का लेखन है तथा छत्रपति शिवाजी महाराजजी के सेनापती तानाजी मालुसरे ने वर्ष १६७० में कोंडाणा दुर्गपर आक्रमण किया । इस लडाई में तानाजी की मृत्यु हुई । तानाजी का उपनाम सिंह था । अतः उनके सम्मान में इस दुर्ग का नाम सिंहगड रखा गया । इस दुर्गपर तानाजी की समाधी है, यह नई जानकारी इसमें है ।

दुर्ग आया; परंतु सिंह नहीं रहा

अनेक लडाईयों में सर्वोत्कृष्ट कार्य करनेवाले तानाजी मालुसरे छत्रपति शिवाजी महाराजजी के अत्यंत शूर सरदार थे । स्वराज्य हेतु कोंढाणा दुर्गपर विजय प्राप्त करने का दायित्व शिवाजी महाराजजी ने तानाजी मालुसरेजी को दिया, तब वे अपने पुत्र के विवाह की सिद्धता कर रहे थे । महाराजजी का आदेश प्राप्त होते ही उन्हों ने उस कार्य को छोड दिया और पहले विवाह कोंढाणा का, तत्पश्‍चात विवाह रायबा का, ऐसा कहकर वे चल निकले । शत्रु के साथ वीरता से लडते समय उनके हाथ से ढाल गिर गई, तब उन्होंने अपने बाएं हाथपर घाव लेते हुए उदयभान का वध कर ही अपने प्राण त्याग दिए । आरपार की लडाई में तानाजी को अपने प्राणों का बलिदान देना पडा ।

दूसरे दिन जब शिवाजी महाराजजी कोंढाणा दुर्गपर पहुंचे, तब उनको तानाजी के बलिदान का समाचार मिला । तब महाराजजी ने कहा, दुर्ग आया; परंतु सिंह नहीं रहा । तानाजी मालुसरे की स्मृति में कोंढाणा दुर्ग के नाम में परिवर्तन कर उसका नाम सिंहगढ रखा गया ।

आगामी युवा पिढी सिंह की भांति बहादूर ना हों, इसके लिए रचा हुआ यह षडयंत्र है, यह ध्यान में लिजिए !

हिन्दु समाज शूरवीर एवं बहादूर है । प्रत्येक हिन्दू सिंह की भांति होता है, यह हिन्दू समाज की धारणा है । इस के कारण आज भी कुछ वंशों में लडकों के नाम के आगे सिंह लगाया जाता है । तानाजी मालुसरे इसी प्रकार के एक शूरवीर बहादूर सिंह थे । छत्रपति शिवाजी महाराजजी ने उनको यह उपाधी दी है; किंतु इस उपाधि को उपनाम का लेप चढाकर आगामी हिन्दू पिढी तानाजी मालुसरे में व्याप्त इस वीरता के गुण का आदर्श ना लें तथा यह समाज षंढ ही रहे, इसके लिए यह नियोजनबद्ध रूप से रचा हुआ यह षडयंत्र है । इस षडयंत्र को तोड डालने के लिए प्रत्येक हिन्दू को इसका वैधानिक मार्ग से विरोध करना आवश्यक है !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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