पुणे महानगरपालिका का धर्मशास्त्रविरोधी उपक्रम !
गणेशमूर्तियों का विसर्जन बहते पानी में करना चाहिए, यह धर्मशास्त्र बताता है । गणेशमूर्ति में व्याप्त सात्त्विकता बहते पानीसमेत सर्वदूर पहुंचकर उसका लाभ सभी को हो, यह उसके पीछे उद्देश्य होता है । हिन्दुआें के सभी त्यौहार पर्यावरणपूरक ही हैं । गणेशमूर्तियों के विसर्जन के कारण किसी भी प्रकार का जलप्रदूषण नहीं होता, इसका ब्यौरा उपलब्ध है । ऐसा होते हुए जलप्रदूषण का भय दिखाकर हिन्दुआें को धर्माचरण से च्युत करने का प्रयास किया जा रहा है । सामान्यरूप से धोवनजल अथवा प्रदूषित पानी के कारण होनेवाले जलप्रदूषण को रोकने के लिए कुछ भी नहीं करनेवाले गणेशमूर्ति के कारण मूलरूप से ना होनेवाले प्रदूषण रोकने के लिए उपक्रम चलाते हैं, यह हास्यास्पद है !
पुणे – गणेशमूर्तियों का नदी में विसर्जन करने से प्रचंड प्रदूषण होता है, इस अज्ञानमूलक विचार से प्रेरित पुणे महानगरपालिका नागरिकों को अमोनियम कार्बोनेट का उपयोग कर गणेशमूर्तियों का विसर्जन करने के लिए बाध्य कर रही है । उसके लिए महानगरपालिका द्वारा पर्यावरणपूरक गणेशोत्सव मनाने के उपक्रम के अंतर्गत गणेशभक्तों को गणेशमूर्तियों का नदी में विसर्जन करने के धर्मशास्त्रीय विधि से च्युत करने का षड्यंत्र रच रही है । बाल्टीभर पानी में अथवा हौज में अमोनियम कार्बोनेट का उपयोग कर घरपरही गणेशमूर्तियों का विसर्जन कर पर्यावरण की रक्षा करें, यह आह्वान महापौर प्रशांत जगताप ने बालगंधर्व रंगमंदिर में २४ अगस्त को आयोजित कार्यक्रम में किया । इस समय महानगरपालिका आयुक्त कुणालकुमार, कसबा गणपति मंदिर के न्यासी श्री. शेटे भी उपस्थित थे ।
इस अवसरपर चलत्चित्र के माध्यम से रसायन का उपयोग कर गणेशमूर्ति को पिघलाने का प्रात्यक्षिक दिखाया गया । इस समय महापौर जगताप ने कहा,
१. सर्वत्र शाडू की मिट्टी की गणेशमूर्ति करने का निर्णय किया, तो जिस स्थान से मिट्टी ली जाती है, वहां की भूमि एवं पर्यावरण की हानी होती है । (हास्यास्पद वक्तव्य ! – संपादक)
२. हमें गणेशोत्सव में नदी का प्रदूषण ना हो, इसकी सावधानी बरतनी चाहिए । त्यौहार के समय में बडी मात्रा में पानी छोडना पडता है । यह भविष्य के लिए संकट की घण्टी है । गणेशमूर्तियों के विसर्जन से प्रदूषण होने के कारण अगले जनपदों को प्रदूषित पानी मिलता है । (महानगरपालिका इसी प्रकार की सावधानी दूषित रासायनिक पानी नदी में ना मिले; इसके लिए क्यों नहीं बरतती ? – संपादक)
३. रसायन का उपयोग कर गणेशमूर्तियों का विसर्जन करना, श्री गणेशजी का अनादर नहीं, अपितु यह अच्छी बात ही है ।
(रसायन का उपयोग कर गणेशमूर्तियों का विसर्जन करना योग्य अथवा अयोग्य, इसका निर्णय करने का अधिकार महापौर का है क्या ? धर्मशास्त्र के विषय में ज्ञान ना होते हुए धर्माचार्यों का मत विचार में लेने की जिज्ञासा ना दिखाते हुए निर्णय करना श्रद्धालुआें की भावनाएं आहत करनेवाला है । – संपादक)
आयुक्त कुणालकुमार ने भी इस समय हौज में अथवा घरपर ही विसर्जन कर पर्यावरण की रक्षा करने का आह्वान किया । कसबा गणपति मंदिर के न्यासी शेटे ने कहा कि, धर्मग्रंथों का अध्ययन करने के पश्चात हौज में विसर्जन करना वैध होने का ध्यान में आया । इसके संदर्भ में आर्ट ऑफ लिव्हिंग के श्री श्री रविशंकरजी ने भी हौज में विसर्जन करने के लिए अनुकूलता दर्शाई । (धर्म में भी विविध शाखाएं होने से कर्मकांड, साथ ही धार्मिक विधियों के संदर्भ में अधिकारी संतों से पूछने से अधिक योग्य दिशादर्शन हो सकता है । – संपादक)
क्षणचित्र
इस समय इस उपक्रम के प्रसार हेतु सिद्ध किए गए हस्तपत्रिकाएं, साथ ही भित्तिपत्रकों का वितरण किया गया । इसमें गणेशोत्सव मनाएं पवित्रता रखकर, पर्यावरणपूरक पद्धति तथा जलप्रदूषण को टालकर, नदी-तालाब में गणेशविसर्जन, करता है बडी मात्रा में जलप्रदूषण यह घोषणाएं होनेवाला मजमून लिखकर गणेशमूर्तियों का नदी में विसर्जन करने से बडी मात्रा में प्रदूषण होता है, यह अंकित किया जा रहा था । (जैसे गणेशमूर्तियों का विसर्जन विधी पर्यावरण का सर्वनाश ही करनेवाला है, यह समाजमनपर अंकित कर रसायन का उपयोग कर गणेशमूर्तियों का विसर्जन करने का प्रचार किया जा रहा है, जो मूलरूप से अशास्त्रीय है । इसके लिए गणेशभक्तों को संगठित होकर महानगरपालिका को वैधानिक पद्धति से खरी-खोटी सुनानी चाहिए । – संपादक)