गणेशोत्सव की पार्श्वभूमि पर एक अभिनेताद्वारा ‘थँक गॉड बाप्पा…’ इस गाने का वीडियो ‘यू ट्यूब’ पर रखा गया है। इस गीत में किया गया श्री गणेशजी का मानवीकरण निम्न प्रकार से है ….
(यह चित्र किसीकी धार्मिक भावना को ठेस पहुचाने हेतु प्रकाशित नहीं किया गया है, हिन्दू देवताओंका किस प्रकार अनादर किया जाता है, यह केवल दर्शाने हेतु यह प्रकाशित किया है – सम्पादक, हिन्दू जागृति)
१. इसमें समाज में व्याप्त स्वार्थी एवं भ्रष्टाचारी प्रवृत्तियों का उल्लेख किया गया है, साथ ही पुलिस के केवल स्वयं के क्षेत्रतक ही सीमित कार्य करने की संकीर्ण वृत्ति एवं रिश्वत लेने की ओर संकेत किया गया है। इस गीत के माध्यम से ‘श्री गणेशजी इन व्यक्तियों जैसे नहीं होते’, यह आशय प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। (भगवान में मनुष्य जैसे दुर्गुण कैसे होंगे ? ऐसा कहने का अर्थ है देवता एवं मनुष्य को एक ही तराजु में तोलने जैसा है ! धर्माचरण एवं साधना न होने से आज आए दिन इस प्रकार से देवता का मानवीकरण कर उनका अनादर किया जा रहा है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) इसके पीछे समाज में चल रहे अपकृत्यों के संदर्भ में उद्बोधन करने का उद्देश्य होगा भी, तो धर्मशिक्षा के अभाव के कारण इसका प्रस्तुतीकरण अयोग्य पद्धति से किया गया है, जो निषेधार्ह है।
२. मनुष्यरूप में श्री गणेशजी पश्चिमी संगीत की लय पर नृत्य कर रहे हैं; अतः इसके कारण उनका अनादर हुआ है।
३. इस गीत में विसर्जन के पश्चात गणेशमूर्तियों की होनेवाली दुर्दशा बताई गई है। ऐसा होनेपर भी ‘गणेशजी हम पर क्रोधित नहीं होते, वे अगले वर्ष पुनः हंसते हुए आते हैं’, ऐसा बताया गया है। इसका अर्थ ‘चाहे हम कितनी भी गलतियां करें; परंतु भगवान हमें क्षमा कर देते हैं’, इस तरह से समाज में अयोग्य संदेश जा रहा है; परंतु गणेशोत्सव का व्यापारीकरण करने से, साथ ही गणेशमूर्तियों का अनादर होने से हम पर श्री गणेशजी की अवकृपा होती ही है !
गणेशोत्सव के उपलक्ष्य में समाज बडी संख्या में संघटित होता है; अतः इस माध्यम से लोगों में ‘राष्ट्र एवं धर्म’ के संदर्भ में जागरूकता उत्पन्न करने का बडा अवसर उपलब्ध होता है। इस अवसर का वास्तविक रूप से लाभ उठाने हेतु तथा उपर्युक्त पद्धति से किया जानेवाला अयोग्य निर्माण टालने हेतु हिन्दुओं को धर्मशिक्षा देकर उनमें धर्माभिमान की वृद्धि होना अपेक्षित है !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात