‘संमोहन’ उपचारशास्र की सीमाएं ध्यान में आने के पश्चात ही परात्पर गुरु डॉ. आठवले अध्यात्मशास्र की ओर मुड गए, तो उनके ही आश्रम में संमोहन कैसे किया जा सकता है ?
सनातन के पनवेल आश्रम में रहनेवाले कुछ साधकों को होनेवाले मानसिक कष्टों के लिए ‘एच और एच १’ औषधियां दी जाती हैं। ऐसा होते हुए भी विशेष अन्वेषण दल ने न्यायालय में आश्रम में जांच करनेपर वहां ये औषधियां बडी मात्रा में मिल गईं, ऐसा दावा किया। परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ‘क्लिनिकल हिप्नोथेरपी’ इस ग्रंथ में प्रकाशित कुछ संदर्भों का; ‘अपने को चाहिए ऐसा’ अर्थ निकाल कर कहते हैं, ‘ये औषधियां देनेपर रोगी कुछ भी करने के लिए सिद्ध होता है ! ये औषधियां संमोहन हेतु उपयोग की जाती हैं ! अतः आश्रम में मिले इन औषधियों का उपयोग संमोहन हेतु किया जाता है, इसकी जांच की जानी चाहिए !’ सरकार पक्ष की ओर से न्यायालय में इस प्रकार का हास्यास्पद दावा किया गया !
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने वर्ष १९९६ में संकलित किए हुए ‘अध्यात्म का प्रास्ताविक विवेचन’ इस ग्रंथ में यह लिखा गया है कि, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने वर्ष १९६७ से १९८२ तक की १५ वर्ष की अवधि में संमोहन उपचार विशेषज्ञ के रूप में अनुसंधान करनेपर उनको यह ध्यान में आया कि, लगभग ३० प्रतिशत रुग्ण सामान्य औषधोपचारों से स्वस्थ नहीं होते। कालांतर से यही रोगी आध्यात्मिक साधना करने से स्वस्थ हो रहें हैं, ऐसा देखने के पश्चात उनके ध्यान में यह भी आया कि, मनोविकारोंपर उपयोग किए जानेवाले संमोहन उपचारशास्र की अपेक्षा अध्यात्मशास्र उच्च कोटि का शास्र है ! डॉ. आठवलेजीने अपनी जिज्ञासु वृत्ति के कारण अध्यात्मशास्र का गहरा अध्ययन किया, साथ ही स्वयं साधना भी की।
अध्यात्म के श्रेष्ठत्व की अनुभूती आने के पश्चात वर्ष १९९३ में उन्होंने संमोहन उपचारविशेषज्ञ के रूप में कार्य करना बंद किया तथा उनका अध्यात्मप्रसार का कार्य आज भी चल रहा है। तदुपरांत परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने ‘अध्यात्म’ इस विषयपर २८४ ग्रंथों का संकलन किया है तथा इन ग्रंथों की जून २०१६ तक १५ भारतीय भाषाओं में ६५ लाख ७१ सहस्र प्रतियां प्रकाशित हुई हैं। साथ ही जर्मन एवं स्पॅनिश इन भाषाओं में भी ६ ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं।
इसके विपरीत उन्होंने ‘संमोहन’ के विषय में केवल ६ ग्रंथों का ही संकलन किया है। इन ग्रंथों में भी ‘साधना’ के लिए आवश्यक ऐसी ‘स्वभावदोष निर्मूलन’ प्रक्रिया की जानकारी दी है। ऐसा होते हुए विशेष अन्वेषण दल जिन औषधियों का उल्लेख कर जिस प्रकार से सनातन के आश्रम में संमोहित किए जाने का दावा कर रहा है, वह कितना हास्यास्पद है, यह ध्यान में आता है !
‘ऐसी’ पद्धति से अन्वेषण करनेवाली पुलिस, असली अपराधियों को पकडकर उनको दण्ड देने का प्रयास, कभी कर सकेगी ?
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात