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पुणे : अनेक गणेशभक्तों ने धर्मशास्त्र के अनुसार बहते पानी में ही श्री गणेशमूर्तिर्यों का किया विसर्जन !

पुणे में हिन्दू जनजागृति समिति के ‘आदर्श गणेश विसर्जन अभियान’ की सफलता !

भक्तों को श्री गणेशमूर्ति विसर्जन का महत्त्व बताते हुए समिति के कार्यकर्ता

पुणे : गणेशोत्सव के अंतिम दिन अनेक भक्तों ने परंपरा के अनुसार गणेशमूर्तियों का नदी में अर्थात बहते पानी में विसर्जन करते हुए धर्मशास्त्र का पालन किया।

हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से यहां के भिडे पुल, एस.एम. जोशी पुल तथा ओंकारेश्‍वर पुल के घाट पर प्रबोधन अभियान चलाया गया। इसे उत्स्फूर्त प्रतिसाद देते हुए भक्तों ने श्री गणेशमूर्तियों का विसर्जन किया। इस अवसर पर मुठा नदी में पानी छोडा गया था।

क्षणिकाएं

१. महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा के सचिव प्रा. रविकिरण गळंगे ने समिति के प्रबोधन फलक देख कर स्वयं आगे आकर लोगों का प्रबोधन करते हुए बहते पानी में मूर्तियों को विसर्जित करने का आवाहन किया।

२. एस. एम.जोशी पुल के समीप के घाट पर एक व्यक्ति को धर्मशास्त्र बता कर बहते पानी में विसर्जन करने का आवाहन करने पर उसने उसके अनुसार कृत्य किया एवं जाते समय समिति के कार्यकर्ताओं को प्रसाद देकर साधकों का अभिवादन किया।

३. ओंकारेश्‍वर घाट में महापालिका की ओर से गणेशमूर्तियों के पूजन के लिए रखे गए पटल दक्षिण-उत्तर दिशा में रखे गए थे। एक भक्त के ध्यान में आने पर उसने तत्परता से उसे परिवर्तित कर पूर्व-पश्चिम रखा।

४. स्पंदन संस्थाद्वारा एक भक्त को बलपूर्वक कुंड में गणेशमूर्ति विसर्जन करने के लिए बताया जा रहा था तथा मूर्ति के गले का पुष्पहार उतारा जा रहा था। उस समय उस भक्त ने फटकारते हुए कहा कि, आपके हाथ में प्लास्टिक के हाथमोजे कितने मायक्रॉन के हैं, पहले देखें एवं पश्चात मूर्ति को हाथ लगाएं !

५. निर्माल्य एकत्रित करने हेतु पटलपूर्ति की गई थी; परंतु गणेशमूर्तियों के पूजन हेतु पर्याप्त पटलों की सुविधा नहीं की गई थी।

भक्तोंद्वारा प्रतिक्रिया

१. बहते पानी में श्री गणेशमूर्तियों का विसर्जन किए बिना मूर्ति स्थापित करने का उद्देश्य सफल नहीं होता। शास्त्र के अनुसार बहते पानी में ही गणेशमूर्तियों का विसर्जन करना उचित है। कुंड में विसर्जन करने को कहनेवाले, लोगों को भ्रमित कर रहे हैं !- श्री. रवींद्र आडेप, कर परामर्शदाता

२. कुंड में अमोनियम बायकार्बोनेट डाला हो अथवा न डाला हो, हमें अपनी परंपरा संजोनी है। हमारे सामने मूर्ति नदी में बह तो जाती है। परंतु कुंड की मूर्तियों के संदर्भ में उनका आगे क्या होगा, कैसे होगा कुछ कहना असंभव है !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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