हिन्दू जनजागृति समितिद्वारा आवाज उठाए जानेपर कृत्रिम कुंड में शेष अनुमानित १ सहस्र मूर्तियों का तालाब में पुनः विसर्जन !
- श्रद्धालुओं, कृत्रिम कुंड में गणेशमूर्तियों का विसजर्न करने से उनका किस प्रकार से अनादर होता है, इसे जान लें और इस प्रकार के कुंडों की संकल्पना का ही विसर्जन करने का प्रयास करें !
- शास्त्रानुसार श्री गणेशमूर्तियों का बहते पानी में ही विसर्जन करना आवश्यक है। वैसा न करते हुए अपने मन से ही धर्माचरण को दूर रखना, साथ ही अयोग्य संकल्पनाओं का समर्थन करना, श्री गणेशजी की अवकृपा के पात्र होने जैसा है ! इस स्थिति में परिवर्तन लाने हेतु सभी को धर्मशिक्षा देनेवाला हिन्दू राष्ट्र ही चाहिए !
(खुली जगह में, विसर्जन के ६ दिन पश्चात रखी ये गणेशमूर्तियां किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने हेतू नहीं दिखा रहें है, कृत्रिम कुंड में विसर्जित मूर्तियों की विडंबना कैसी होती है ये श्रद्धालुओं के समझ में आना चाहिये इसलिये दिखा रहें हैं – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
पुणे : आंबेगाव ग्रामपंचायत की सीमा में कृत्रिम कुंड में विसर्जित की गई श्री गणेशमूर्तियां गणेशोत्सव समाप्त होने के ६ दिन पश्चात भी अपने स्थान पर उसी प्रकार से पडी रहने का गंभीर प्रकरण सामने आया है !
लगभग १ सहस्र मूर्तियों को कुंड से बाहर निकालकर खुले स्थान पर रखा गया था। यह ध्यान में आनेपर हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. योगेश डिंबळे एवं श्री. कृष्णाजी पाटिल ने तत्परता के साथ ग्रामपंचायत उपसरपंच एवं ग्रामपंचायत कर्मचारियों से मिलकर श्री गणेशमूर्तियों के हो रहे इस अनादर के संदर्भ में आवाज उठाई !
समिति के कार्यकर्ताओं ने कृत्रिम कुंड में रखी श्री गणेशमूर्तियों का किस प्रकार अनादर होता है, प्रारंभ में इसका उटपटांग उत्तर देनेवाले संबंधित अधिकारियों को संज्ञान दिलानेपर उन्होंने शेष श्री गणेशमूर्तियों का तुरंत विसर्जन करने का आश्वासन दिया। इस संदर्भ में ठेकेदार युवराज गोळे से संपर्क करनेपर उन्होंने शेष सभी श्री गणेशमूर्तियों का जांभूळवाडी तालाब में विसर्जन करने की जानकारी दी।
‘धर्मशिक्षा’ के अभाव के कारण हुर्इ अयोग्य कृतियां !
१. गांव की श्री गणेशमूर्तियों की अपेक्षित संख्या ध्यान में न लेते हुए सिद्ध किया गया कृत्रिम कुंड आकार में छोटे होने से उसमें कुछ ही मूर्तियों का विसर्जन होनेपर यह कुंड भर जाता था !
२. कुंड के भरने के पश्चात श्री गणेशमूर्तियों को ३ बार पानी में डुबाकर उनको बाहर निकालने के निर्देश दिए जाते थे !
३. इस प्रकार से कुंड में ३ बार डुबाकर बाहर निकाली हुई मूर्तियों में से कुछ मूर्तियां कुम्हार लेकर जाते हैं तथा अच्छी स्थिति में होनेवाली श्री गणेशमूर्तियों को सुखाकर उनको रंगाकर अगले वर्ष पुनः उनकी बिक्री की जाती है !
४. इस संदर्भ में उपसरपंच ने बताया कि, विसर्जित की जानेवाली मूर्तियों की संख्या अधिक होने से कृत्रिम कुंड में स्थित मूर्तियां कुछ व्यक्तियों को दान के रूप में दी जानेवाली थीं; परंतु मूर्तियों को ले जाने के लिए संबंधित व्यक्ति के न आने से तालाब में मूर्तियों का विसर्जन किया गया।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात