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क्रांतिकारी भगत सिंह के जीवन के वो १० पहलु, जिन्हे शायद ही कोर्इ जानता हों !

क्रांतिकारी भगतसिंह के जयंती के अवसर पर…

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भारत के सबसे प्रभावशाली क्रान्तिकारियो की सूचि में भगत सिंह का नाम सबसे पहले लिया जाता है। जब कभी भी हम उन हुतात्माआें के बारे में सोचते है जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी तब हम बड़े गर्व से भगत सिंह का नाम ले सकते है। आज भगतसिंह की जयन्ती पर भगत सिंह के जीवन के उन पहलुओं को उजागर कर रहे है जिन्हे कदाचित ही कोई जनता हो…

१. भगत सिंह का जन्म २७ सितंबर, १९०७ को पंजाब के लायलपुर के बंगा गांव (जो अभी पाकिस्तान में है) में हुआ था। उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था।

२. भगत सिंह को हिन्दी, उर्दू, पंजाबी तथा अंग्रेजी के अलावा बांग्ला भी आती थी जो उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से सीखी थी।

३. १२ साल की आयु में जब भगत को जालियांवाला बाग हत्याकाण्ड का समाचार मिला, तो वह विद्यालय से १२ मील पैदल चलकर जलियांवाला बाग पहुंचे थे।

४. लाहौर के राष्ट्रीय महाविद्यालय की पढाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की स्वतंत्रता के लिए ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना की थी।

५. काकोरी काण्ड में ४ क्रान्तिकारियों को फांसी व १६ अन्य को कारावास की शिक्षा से भगत सिंह इतने अधिक नाराज हुए कि उन्होंने १९२८ में अपनी पार्टी नौजवान भारत सभा का हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन में विलय कर दिया और उसे एक नया नाम दिया  ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन´।

६. जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने ६४ दिनों तक भूख हडताल की। उनके एक साथी जतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हडताल में अपने प्राण ही त्याग दिये थे।

७. २३ मार्च १९३१ को शाम में करीब ७ बजकर ३३ मिनट पर भगत सिंह तथा उनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई। फांसी के दिन भी बेफिक्री से वे समाचारपत्र तथा ग्रंथ का वाचन कर रहे थे ।

८. १९२३ में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद उन्हें विवाह बन्धन में बांधने की तैयारियां होने लगीं तो वे लाहौर से भागकर कानपुर आ गये।

९. भगतसिंह की दादी ने भगत का नान ‘भागां वाला’ (अच्छे भाग्य वाला) रखा था, जिसे बाद में में ‘भगतसिंह’ कहा जाने लगा।

१०. जलियांवाला बाग में देश के लिए मर-मिटने वाले हुतात्माआें के खून से भीगी मिट्टी को उन्होंने एक बोतल में रख लिया, जिससे सदैव यह याद रहे कि उन्हें अपने देश और देशवासियों के अपमान का बदला लेना है।

स्त्रोत : हरिभूमि

Tags : लेख

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