विजयादशमी के निमित्त परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी का संदेश !
शुंभ, निशुंभ, महिषासुरादि बलशाली दैत्यों पर महादुर्गा ने तथा अहंकारी रावण पर श्रीराम ने विजय प्राप्त की, वह दिन था विजयादशमी ! दशहरा केवल देवताआें के विजय का स्मरण करने का ही त्यौहार नहीं; विजिगीषा (विजय पाने की इच्छा) वृत्ति का संवर्धन करने का दिन है । इसीलिए इस दिन राक्षसी प्रवृत्ति पर विजय प्राप्त करने हेतु हिन्दू धर्म में विजयोपासना बताई गई है । दशहरे के दिन विजयप्राप्ति हेतु अपराजिता देवी की एवं शत्रु का संहार करनेवाले शस्त्रों की पूजा की जाती है । पश्चात शत्रु के पराजय के लिए सीमोल्लंघन किया जाता है ।
आज विजयोपासना न किए जाने के कारण सर्वत्र हिन्दू पराजित हो रहे हैं । युद्ध का एक ही उद्देश्य होता है – विजय ! विश्व में पराजय के लिए एक भी युद्ध नहीं होता । हिन्दुओ, विजय की यह महिमा एवं विजयादशमी की विजयोपासना का महत्त्व ध्यान में रखें ! केवल कर्मकांड के रूप में विजयादशमी के दिन विजयोपासना न करें; अपितु इस वर्ष से सामाजिक, राजनीतिक इ. क्षेत्रों के भ्रष्टाचारादि दुष्प्रवृत्तियों के निवारणार्थ खरे अर्थों में विजयोपासना आरंभ करें !
– (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले, प्रेरणास्त्रोत, हिन्दू जनजागृति समिति