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संत ज्ञानेश्‍वर की कालावधि में ‘सांपसीढी’ का खेल ‘मोक्षपट’ के रूप में पहचाना जाता था – प्रा. जेकॉब, डेन्मार्क

कहां संत ज्ञानेश्‍वर की कालावधि का संशोधन करनेवाले विदेशी प्राध्यापक और कहां संत ज्ञानेश्‍वर पर आलोचना करनेवाले तथाकथित बुद्धिवादी !

संत ज्ञानेश्‍वर
संत ज्ञानेश्‍वर

पुणे : डेन्मार्क देश के प्रा. जेकॉबद्वारा किए गए संशोधन से सामने आया है कि संत ज्ञानेश्‍वर की कालावधि में ‘सांपसीढी’ का खेल ‘मोक्षपट’ के रूप में पहचाना जाता था !

ऐसी जानकारी मिली कि प्रा. जेकॉब ने इंडियन कल्चरल ट्रेडिशन के अंतर्गत संत ज्ञानेश्‍वर की कालावधि में खेले जानेवाले खेल ऐसा संशोधनात्मक संदर्भ लिया था। इसमें उन्हें संत ज्ञानेश्‍वर की कालावधि में सांपसीढी का खेल खेला जाता था !

इस खेल को प्राप्त करने हेतु उन्होंने पूरे भारत में भ्रमण कर सांपसीढी के अनेक पट संग्रहित किए; परंतु उन्हें कहीं भी संत ज्ञानेश्‍वर का पट तथा उसका संदर्भ नहीं मिला। इस संदर्भ में प्रा. जेकॉब ने यहां के संत साहित्य के ज्येष्ठ अभ्यासी एवं संशोधक श्री. वा.ल. मंजूळ से विचार करने पर रा.चिं. ढेरे के हस्तलिखित संग्रह से उन्हें दो मोक्षपट मिले। इस पर लिखित पंक्तियों से जीवननिर्वाह कैसे करें, कौन सी कौडी (मोहरा) गिरी तो क्या करना चाहिए, इसका मार्गदर्शन भी किया गया है !

मोक्षपट से संदेश !

मोक्षपट के दोनों ही पट २० x २० इंच आकार के हैं एवं उसमें ५० चौकोन हैं। उसमें प्रथम घर ‘जनम’ का जब कि अंतिम घर ‘मोक्ष’ का है जिसकेद्वारा मनुष्य के जीवन की यात्रा दर्शाई गई है। मोक्षपट खेलने हेतु सांपसीढी के समान ही ६ कौडियों का उपयोग किया गया है। कौडियों के उलटे गिरने पर दान मिलता है। इस पट पर भी सांप है एवं काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद एवं द्वेष ऐसे नाम दिए गए हैं। पट की हर सीढी को उन्नति की सीढी संबोधित कर उन्हें सत्संग, दया एवं सद्बुद्धि ऐसे नाम भी दिए गए हैं !

मनुष्य ने जीवन कैसे व्यतीत करना चाहिए, इसका तत्त्वज्ञान खेल के माध्यम से बताया गया है !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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