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बांग्लादेश में हिंदुओं तथा मंदिरों पर हमलों को लेकर ‘बयानवीर’ तथा ‘सरकार’ चुप क्यों ?

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पूर्वी पाकिस्तान के बंगलाभाषी लोगों को पश्चिमी पाकिस्तान के शासकों के अत्याचारों से मुक्ति दिलवाने में भारतीय सेनाओं ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई जिसके चलते २६ मार्च, १९७१ को बांग्लादेश अस्तित्व में आया।

दोनों देशों के नेताओं ने ४० वर्षों से चला आ रहा सीमा विवाद सुलझाने के लिए ६ जून, २०१५ को भूमि सीमा समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसके अंतर्गत भारत और बांग्लादेश की मुख्य सीमा के अंदर विवादास्पद क्षेत्रों की अदला-बदली और लोगों को नागरिकता देने पर सहमति व्यक्त की गई।

इस समझौते के परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने, नशीले पदार्थों, नकली मुद्रा, मवेशियों तथा अन्य वस्तुओं की तस्करी, अवैध घुसपैठ आदि रोकने में मदद मिल रही है।

बांग्लादेश के राष्टपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना इस समय बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं जिनके परिवार का बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में उल्लेखनीय योगदान रहा है।

वहां के हिन्दू, बौद्ध, ईसाई व शिया जैसे अल्पसंख्यक सामान्यत: शेख मुजीब की पक्ष के समर्थक हैं और बांग्लादेश के साथ भारत के लम्बे सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक संबंध भी हैं परंतु इसके परंतु पिछले ४ दशकों से ये बांग्लादेश में नस्ली भेदभाव का शिकार हो रहे हैं।

अल्पसंख्यक परिवारों की बहू-बेटियों से बलात्कार तथा उन पर अन्य अत्याचार बढ गए हैं। उनका जबरन धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा है और उनके धर्म स्थलों पर भी लगातार आक्रमण किए जा रहे हैं !

बांग्लादेश में २०१२ में एक फेसबुक पोस्ट को लेकर बौद्धों के विरुद्ध भारी हिंसा हुई और २५,००० से अधिक लोग सडकों पर उतर आए जिन्होंने ५० से अधिक बौद्ध परिवारों को लूट लिया व १० बौद्ध मठ नष्ट कर दिए गए।

२०१३-१४ में बांग्लादेश में हुई नस्ली हिंसा में हिन्दुओं के १५०० घर और लगभग ५० मंदिरों को नष्ट कर दिया गया। दिसम्बर, २०१५ में दिनाजपुर जिले में एक हिन्दू मंदिर पर कट्टरपंथियों ने देसी बमों से आक्रमण करके भारी क्षति पहुंचाई। इस वर्ष जनवरी से अब तक बांग्लादेश में ४ हिन्दू पुजारियों सहित कम से कम ४० अल्पसंख्यकों की हत्या की जा चुकी है और यह अभी भी जारी है !

नस्ली हिंसा की नवीनतम घटना में ३० अक्तूबर को १०,००० कट्टरपंथियों ने १०० से अधिक मकानों को जलाने व लूटपाट करने के अलावा हिन्दुओं की आस्था के केंद्र दत्त बाडी मंदिर, घोषपाडा मंदिर, नमाशूद्र पाड़ा मंदिर, जगन्नाथ और गौडा मंदिरों सहित १७ हिन्दू मंदिरों पर आक्रमण करके उन्हें भारी क्षति पहुंचाई तथा अनेक देव प्रतिमाओं को खंडित कर दिया।

इन आक्रमण में विभिन्न मंदिरों के कुछ पुजारियों सहित १०० से अधिक लोग घायल हुए। बताया जाता है कि, ये आक्रमण कथित रूप से रविवार दोपहर को एक व्यक्तिद्वारा मक्का स्थित ‘मस्जिद अलहराम’ के संबंध में किए गए फेसबुक पोस्ट के बाद भडके विवाद के चलते किए गए।

इस समय जब बांग्लादेश में इतने बडी मात्रा पर हिन्दुओं पर आक्रमण व हिंदू धर्म स्थलों पर तोड-फोड की गई है, हमारे बयानवीरों व अयोध्या में राम मंदिर के लिए अभियान चलानेवालों ने एक शब्द भी मुंह से नहीं निकाला। लोगोंद्वारा बांग्लादेश में हिन्दुओं पर आक्रमण और मंदिरों में तोड-फोड के संबंध में ‘बयानवीरों’ की चुप्पी पर प्रश्नचिन्ह लगाने से स्पष्ट है कि, हमारे बयानवीरों को लोगों की समस्याओं से तो कोई लेना-देना नहीं है उन्हें तो बस किसी न किसी तरह चर्चा में बने रहने से मतलब है !

भारत सरकार को भी बांग्लादेश सरकार के साथ यह मुद्दा गंभीरतापूर्वक उठाना चाहिए था जो अब तक उठाया नहीं गया। इससे जहां बांग्लादेश में सक्रिय कट्टरपंथी तत्वों के हौसले बुलंद हो रहे हैं वहीं बांग्लादेश के हिंदू तथा अन्य अल्पसंख्यकों में हताशा बढ रही है कि आखिर उनकी सरकार उनकी समस्याओं की ओर उदासीन क्यों है ?

स्त्रोत : पंजाब केसरी

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