मेरठ : दुनियाभर में दूध की शुद्धता की मिसाल बनी भारतीय दुधारू संपदा पर ग्रहण लग चुका है। मवेशियों की दर्जनों प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। सिंथेटिक दूध का प्रचलन, हरे चारों की कमी एवं पशु कटान की वजह से पोषण की गंगा का स्रोत सूखने लगा है। दूध बढ़ाने के नाम पर भारतीय नस्लों के साथ विदेशी नस्लों की घालमेल ने अमृत को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है। न्यूजीलैंड में प्रोफेसर डा. वुडफोर्ड ने शोध पत्र में साफ किया है कि भारत की सभी गायों में बीटा कैसिन-दो पाया जाता है, जिसमें स्वास्थ्य एवं बुद्धिवर्धक समस्त गुणधर्म हैं। दर्जनों रोगों को समूल नष्ट करने की प्रवृत्ति का वैज्ञानिक आधार पर सत्यापन किया जा चुका है।
वैदिक मान्यता के मुताबिक, भारतीय गोवंश समुद्र मंथन से उत्पन्न हुआ, इसी वजह से जंगली प्रवृत्ति से दूर रहा। दूध की गुणवत्ता के वैज्ञानिक आंकलन में भी भारतीय गोवंश की प्रामाणिकता सिद्ध हुई है। न्यूजीलैंड के डा. कीथ वुडफोर्ड ने एशिया एवं यूरोपीय नस्लों पर शोध कर निष्कर्ष निकाला कि प्राचीन काल में यूरोपीय नस्ल की गायों में म्यूटेशन होने की वजह से दूध में बीटा कैसिन ए-दो खत्म हो गया और इसकी जगह बीटा कैसिन-एक नामक विषाक्त प्रोटीन बनने लगा, जबकि भारतीय नस्लों में म्यूटेशन न होने से दूध की गुणवत्ता बनी रही। मेरठ में १२०० डेयरियों में से उत्पादित करीब २० लाख लीटर दूध में से ६० फीसदी का उत्पादन गायों से होता है। कई केन्द्रों में गाय के दूध से जुड़े उत्पादों को भी बनाया जा रहा है।
विदेशी नस्ल के दूध में अफीम
अमेरिका में हुए शोध के मुताबिक विदेशी नस्ल की गायों में बीटा कैसिन ए-एक नामक दुग्ध प्रोटीन पाया जाता है, जिसे अफीम जैसा जहरीला बताया गया। इस दूध का प्रोटीन पाचन के मध्य एक उत्पाद बनाता है जो पाचन से पहले ही रक्तप्रवाह में मिल जाता है, जिससे हृदय रोग, शुगर, कैंसर, सिट्जनोफ्रेनिया, एवं अन्य कई जानलेवा बीमारियां बनती हैं। द डेविल इन मिल्क नामक किताब में साफ किया गया है कि ए-दो प्रकार के दूध का प्रयोग ही मानव स्वास्थ्य के लिए उत्तम है। अमेरिका एवं न्यूजीलैंड की कंपनियां जेनेटेकली टेस्टेड ए-दो दूध बाजार में उपलब्ध करवा रही हैं।
क्या कहते हैं वैज्ञानिक
भारतीय पशुओं की नस्लीय विशेषता हमेशा सम्मान का पात्र रही है। गोवंश के मूत्र में रेडियोधर्मिता सोखने की क्षमता पायी जाती है, जो भोपाल गैस त्रासदी के दौरान भी सिद्ध हो चुकी है। गोबर से लीपे हुए घरों पर कम असर हुआ। अमेरिका ने भी गोमूत्र में कैंसर विरोधी तत्व होने को लेकर पेटेंट दिया है। गाय के दूध में स्वर्ण भस्म भी बनता है। मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया ने भी गाय के दूध को सर्वोत्तम माना है। गाय का घी खाने से कोलेस्ट्रोल नहीं बढ़ता।
-डा. डी.के. सधाना, पशु वैज्ञानिक, एनडीआरआइ, करनाल
देशी गाय के दूध से बनी दही में ऐसा बैक्टीरिया पाया जाता है जो एड्स विरोधी गुणधर्म रखता है। जैव प्रौद्योगिकी के इस युग में गोवंश के लिए अपार संभावनाएं हैं। भारतीय जलवायु की विविधता से भी दूध की गुणवत्ता बढ़ती है।
– डा. मनोज तोमर, वैज्ञानिक, जिला विज्ञान केन्द्र।
दूध : कुछ तथ्य
१. पश्चिम यूपी में गाय-भैंसों के बीच गाय की भागीदारी ६० फीसदी तक है, जो वक्त के साथ कम होती जा रही है।
२. पशुपालन के प्रति अरुचि एवं अंधाधुंध कटान की वजह से अब देश में नस्ल कम हो गई।
३. दुनिया की सर्वोत्तम नस्ल गिर गाय की संख्या सौराष्ट्र में दस हजार से भी कम, जबकि ब्राजील में सर्वाधिक है।
४. कई कृषि विवि में साहीवाल, गिर, थारपारकर, अंगोल एवं राठी समेत उत्तम नस्ल की गायों का संस्थान खोला गया, किंतु विदेशी फंड के लिए क्रास ब्रीड का राग अलापा जा रहा है।
५. विश्वभर में २५० गायों के नस्ल में से ३२ नस्लें भारतीय गोवंश की हैं।
६. केरल की वैचूर प्रजाति दुनिया की सबसे छोटी नस्ल है। सांड की ऊंचाई महज तीन फुट होती है। जिनकी संख्या कम हो चुकी है।
७. इस प्रजाति की गाय में सर्वाधिक ७ फीसदी वसा पाया जाता है, किंतु संख्या बढ़ाने पर सरकारों ने कोई रुचि नहीं ली।
संदर्भ : जागरण