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केरल ने सुप्रीम कोर्ट में रुख बदला : सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की वकालत की

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नई देहली : केरल की वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार ने अपने रुख में बदलाव करते हुये सोमवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि वह ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में हर आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में है।

न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षतावाली तीन सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष राज्य सरकार के वकील ने कहा कि अब वह २००७ में दाखिल अपने मूल रुख के अनुरूप कदम उठायेगी। इसमें मंदिर परिसरों में महिलाओं के प्रवेश की हिमायत की गयी थी। राज्य सरकार ने इससे पहले जुलाई में दाखिल अतिरिक्त हलफनामे में मंदिर में महिलाओं के प्रवेश निषेध का समर्थन किया था।

इस प्रकरण के शुरू में २००७ के दौरान वाम मोर्चा सरकार ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का समर्थन किया था लेकिन राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस नीत यूडीएफ ने इस निर्णय को बदल दिया था। राज्य में एलडीएफ के हाथों पराजय का सामना करने से पहले यूडीएफ सरकार का कहना था कि वह १० से ५० वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश के खिलाफ है क्योंकि आदिकाल से यह परंपरा चली आ रही है।

पीठ ने जब राज्य सरकार के रुख के बारे में पूछा तो वरिष्ठ अधिवक्ता गुप्ता ने कहा कि राज्य सरकार अतिरिक्त हलफनामे को नहीं बल्कि अपने २००७ के हलफनामे को अपनी मंशा का आधार बनाना चाहती है। पीठ ने इस धर्म स्थल का प्रबंधन देखने वाले त्रावणकोर देवास्वम बोर्ड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के के वेणुगोपाल के इस कथन को भी दर्ज किया कि राज्य सरकार अपनी सुविधा के अनुसार अपना रुख नहीं बदल सकती है। पीठ ने इस मामले की सुनवाई १३ फरवरी के लिये निर्धारित करते हुये कहा कि सरकार का रुख अंतिम नहीं है, इसलिए वह इसके लिंग समानता के बारे में संविधान के प्रावधानों सहित इसके विभिन्न पहलुओं पर विचार के बाद ही कोई निर्णय करेगी।

पीठ ने टिप्पणी की कि क्या जैविक परिस्थितियों की वजह से किसी महिला को मंदिर में प्रवेश करने से रोका जा सकता है ? क्या कानून में इसके लिये कोई निषेध का प्रावधान हो सकता है। वह चाहे तो जा सकती है या नहीं जाये। शीर्ष अदालत ने ११ जुलाई को संकेत दिया था कि वह १० से ५० वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं के इस मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने संबंधी सदियों पुरानी परंपरा से संबंधित मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंप सकती है। पीठ का कहना था कि इस परंपरा से मौलिक अधिकारों का हनन होता है।

शीर्ष अदालत ने यह भी टिप्पणी की थी कि संविधान में महिलाओं को भी अधिकार प्राप्त हैं और यदि यह मामला संविधान पीठ को सौंपा गया तो वह इस बारे में विस्तृत आदेश देगी। पीठ ने टिप्पणी की थी कि मंदिर एक सार्वजनिक धार्मिक स्थल है और वहां आनेवाली महिला को प्रवेश से नहीं रोका जा सकता है। पीठ ने यह भी कहा था कि इससे महिलाओं के अधिकारों का हनन होता है और प्रत्येक अधिकार के साथ संतुलन बनाने की आवश्यकता है !

स्त्रोत : झी न्यूज

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