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भारत की परंपरा ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की रही है – नरेंद्र मोदी

आश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्थी, कलियुग वर्ष ५११६

अमेरिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू सभी के सिर चढ़कर बोल रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने ऐतिहासिक भाषण के बाद ग्लोबल सिटिजन फेस्टीवल में भी मोदी अपने ही अंदाज में नजर आए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूएन में हिंदी में भाषण दिया। 35 मिनट के इस भाषण में मोदी ने कई मुद्दे उठाए।

यूएन में हिंदी में भाषण देने वाले मोदी ने यहां अपना भाषण संस्कृत में शुरु किया और फिर दुनिया भर के लोगों को अंग्रेजी में वसुधैव कुटुम्बकम का पाठ पढ़ाया।

इस भाषण के कुछ प्रमुख सूत्र…

प्रत्येक राष्ट्र की, विश्व की अवधारणा उसकी सभ्यता एवं धार्मिक परंपरा के आधार पर निरूपित होती है। भारत चिरंतन विवेक समस्त विश्व को एक कुटंब के रूप में देखता है। और जब मैं यह बात कहता हूं तो मैं यह साफ करता हूं कि हर देश की अपनी एक फिलॉस्फी होती है। मैं फिलॉस्फी के संबंध में नहीं कह रहा हूं। और देश उस फिलॉस्फी की प्रेरणा से आगे बढ़ता है। भारत एक देश है, जिसकी वेदकाल से वसुधैव कुटुम्बकम परंपरा रही है।

भारत एक देश है, जहां प्रकृति के साथ संवाद, प्रकृति के साथ कभी संघर्ष नहीं है ये भारत के जीवन का हिस्सा है और इसका कारण उस फिलॉस्फी के तहत, भारत उस जीवन दर्शन के तहत, आगे बढ़ता रहता है। प्रत्येक राष्ट्र की, विश्व अवधारणा उसकी सभ्यता और उसकी दार्शनिक परंपरा के आधार पर निरूपित होती है। भारत का चिरंतन विवेक समस्त विश्व को, जैसा मैंने कहा – वसुधैव कुटुम्बकम एक कुटुम्ब के रूप में देखता है। भारत एक ऐसा राष्ट्र है, जो केवल अपने लिए नहीं, बल्कि विश्व पर्यंत न्याय, गरिमा, अवसर और समृद्धि के हक में आवाज उठाता रहा है। अपनी विचारधारा के कारण हमारा बहुपक्षवाद में दृढ़ विश्वास है।

आज यहां खड़े होकर मैं इस महासभा पर एक टिकी हुई आशाओं एवं अपेक्षाओं के प्रति पूर्णतया सजग हूं। जिस पवित्र विश्ववास ने हमें एकजुट किया है, मैं उससे अत्यंत प्रभावित हूं। बड़े महान सिद्धांतों और दृष्टिकोण के आधार पर हमने इस संस्था की स्थापना की थी। इस विश्वास के आधार पर कि अगर हमारे भविष्य जुड़े हुए हैं तो शांति, सुरक्षा, मानवाधिकार और वैश्विक आर्थिक विकास के लिए हमें साथ मिलकर काम करना होगा।

योग हमारी पुरातन परंपरा की अमूल्य देन है। योग मन व शरीर, विचार व कर्म, संयम व उपलब्धि की एकात्मकता का तथा मानव व प्रकृति के बीच सामंजस्य, का मूर्त रूप है। विश्व व प्रकृति के साथ तादम्यव को प्राप्त करने का माध्यम है। यह हमारी जीवन शैली में परिवर्तन लाकर तथा हम में जागरूकता उत्पन्न करके जलवायु परिवर्तन से लड़ने में सहायक हो सकता है। आइए हम एक ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ को आरंभ करने की दिशा में कार्य करें। अंतत: हम सब एक ऐतिहासिक क्षण से गुजर रहे हैं। प्रत्येक युग अपनी विशेषताओं से परिभाषित होता है। प्रत्येक पीढी इस बात से याद की जाती है कि उसने अपनी चुनौतियों का किस प्रकार सामना किया। अब हमारे सम्मुख चुनौतियों के सामने खड़े होने की जिम्मेदारी है।

स्त्रोत : आइबीएन खबर

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